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________________ १९८३ छक्खंडागमे वेयणाखरं [., १, ११. सोहम्मे माहिदे पढमपुढवीसु होदि चदुगुणिदं । बम्हादिआरणच्चुद पुढवीणं अट्ठगुणं ॥ १२ ॥ गेवजेसु च बिगुणं उवरिमगेवग्जएगवाजेसु । दोणि सहस्साणि भवे कोडिपुधत्तेण अहियाणि ॥ १२५ ॥ एदाहि दोहि गाहाहि तसहिदी उप्पादेदव्वा । तिस्से पमाणमेदं |२००० ।।९ध एवं पुष्यकोडिपुधत्तं । तसअपज्जत्ताणं पंचिंदियअपज्जत्तमंगो। जोगाणुवादेण पंचमणजोगि-पंजवचिजोगितिण्णिपदा केवचिरं कालादो होति ? णाणाजीव षडुच्च सव्वद्धा। एगजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं । कावजोगीसु कदि-णोकदि-अवत्तव्वसंचिदा केवचिरं कालादो होति ? णाणाजीवं पडुच्च सव्वद्धा । एगजीवं पडुच्च जहण्णेण अंतोमुहुत्तं, उक्कस्सेण अणतकालमसंखेज्जा पोग्गलपरियट्टा । ओरालियकायजोगीसु कदिसंचिदा केवचिरं कालादो होंति ? णाणाजीवं पडुच्च सव्वद्धा । एगजीवं पड्डुच्च जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्सेण बावीसवस्ससहस्साणि देसूणाणि । ओरालियमिस्सकायजोगीसु कदि-णोकदि-अवत्तव्वसंचिदा केवचिरं कालादो होति ? णाणाजीवं सौधर्म, माहेन्द्र और प्रथम पृथिवीमें चार बार उत्पन्न होता है। ब्रह्म कल्पसे आरण-अच्युत कल्पों और द्वितीयादि शेष पृथिवियोंमें आठ वार उत्पन्न होता है। एक उपरिम प्रैवेयकको छोड़कर सब ग्रैवेयकोंमें दो वार उत्पन्न होता है। इस प्रकार प्रस पर्यायका काल पूर्वकोटिपृथक्त्वसे अधिक दो हजार सागरोपम प्रमाण होता है ॥ १२४-१२५॥ इन दो गाथाओंसे त्रस पर्यायकी स्थितिको उत्पन्न कराना चाहिये । उसका प्रमाण यह है। (कल्पोंमें ८३६, प्रथमादिक आठ ग्रैवेयकोंमें ४२४, सात पृथिवियोंमें ७४०, ८३६ + ४२४ + ७४० = २००० सागरोपम) यह (९६) पूर्वकोटिपृथक्त्व है। त्रस अपर्याप्तोंकी प्ररूपणा पंचेन्द्रिय अपर्याप्तोंके समान है। .योगमार्गणानुसार पांच मनोयोगी और पांच वचनयोगी तीन पदवाले कितने काल तक रहते हैं ? नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्व काल रहते हैं। एक जीवकी अपेक्षा जघन्यसेएकसमय और उत्कर्षसे अन्तर्मुहूर्त काल तक रहते हैं । काययोगियोंमें कृति,नोकृति और अवक्तव्य संचित जीव कितने काल तक रहते हैं ? नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्व काल रहते हैं। एक जीवकी अपेक्षा जघन्यसे अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्षसे असंख्यात पुद्गलपरिवर्तन प्रमाण अनन्त काल तक रहते हैं । औदारिककाययोगियों में कृतिसंचित कितने काल सकारहते हैं ? नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्व काल रहते हैं। एक जीवकी अपेक्षा जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे कुछ कम बाईस हजार वर्ष तक रहते हैं। औदारिकमिश्रकायपोगियों में कृति, नोकृति व अवक्तव्य संचित जीव कितने काल तक रहते हैं ? नाना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001403
Book TitleShatkhandagama Pustak 09
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1949
Total Pages498
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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