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________________ १, १, ६..] कदिअणियोगहारे णोआगमदम्बकदिपवणा ।२७१ एगत्तेणुवलंभादो। तदो कदिपाहुडजाणओ चेव सरीरमिदि जाणुगमविय-वट्टमाणसरीराणि आगमदव्वकदीए पविट्ठाणि ति गएण पुध ण वुत्ताओ । जीव-सरीराणं भेदपण्णवणिज्जेण णएण ताओ दो वि कदीओ परूविज्जति । तं जहा- जीवो सरीरादो भिण्णो, अणादि-अणतत्तादो सरीरे सादि-सांतभावदसणादो; सव्वसरीरेसु जीवस्स अणुगमदंसणादो सरीरस्स तदणुवलंभादो; जीव-सरीराणमकारणत्त [-सकारणत्त] दसणादो। सकारणं सरीरं, मिच्छत्तादिआसवफलत्तादो; णिक्कारणो जीवो, जीवभावण धुवत्तादो सरीरदाहच्छेद-भेदे हि जीवस्स तदणुवलंभादो । तेण दो वि कदीओ मंगलादीसु परूविदाओ। जा सा भवियदब्बकदी णाम-जे इमे कदि त्ति अणिओगद्दारा भविओवकरणदाए जो ढिदो जीवो ण तावं तं करेदि सा सव्वा भवियदव्वकदी णाम ॥ ६४ ॥ शरीरसे शरीरधारी अभिन्न है । इस कारण चूंकि कृतिप्राभृतका जानकार जीव ही शरीर है,अतः भावी और धर्त. मान शायकशरीरोंके आगमद्रव्यकृतिमें प्रविष्ट होनेसे [जीव और शरीरके अभेद प्रज्ञापक] नयसे उन्हें पृथक् नहीं कहा। जीव और शरीरके भेदप्रज्ञापनीय नयसे उन दोनों कृतियोंकी प्ररूपणा करते हैं। वह इस प्रकार है-जीव शरीरसे भिन्न है. क्योंकि, वह अनादि-अनन्त है, परन्त शरीर में सादि-सान्तता पायी जाती है; सब शरीरोंमें जीवका अनुगम देखा जाता है, किन्तु शरीरके जीवका अनुगम नहीं पाया जाता तथा जीव अकारण और शरीर सकारण देखा जाता है। शरीर सकारण है, क्योंकि, वह मिथ्यात्व आदि आनवोंका कार्य है। जीव कारण रहित है, क्योंकि, यह चेतनभावकी अपेक्षा नित्य है, तथा शरीरके दाह, छदन और भेदनसे जीवका दहन, छेदन एवं भेदन नहीं पाया जाता । इसीलिये दोनों ही कृतियोंकी मंगल आदिकोंमें प्ररूपणा की गई है। जो वह भावी द्रव्यकृति है- जो वे कृतिअनुयोगद्वार हैं उनके भविष्यमें होनेवाले उपादान कारण रूपसे जो जीव स्थित होकर उसे उस समय नहीं करता है वह सब भावी नोआगमद्रव्यकृति कहलाती है ॥ ६४ ॥ १ प्रतिषु । भविओवकरणदाए गो यपु ण तात्र' इति पाठः । २ प्रतिषु · भविओ व्वकदी' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001403
Book TitleShatkhandagama Pustak 09
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1949
Total Pages498
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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