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________________ २६१ छक्खंडागमे वेयणाखंड [१, १, ५६. योगद्दारुवजोगो थुदी णाम । एगमग्गणोवजोगो धम्मकहा णाम । एवमेदे कदीए अळुवजोगा. परूविदा । सेसं सुगमं । एदेहि वदिरित्तजीवो सुदणाणक्खओवसमसहिओ णट्ठक्खओवसमो वा अणुवजुत्तो णाम । सुत्तम्मि अणुवजुत्तजीवलक्खणमपरूविदं कधं णवदे ? ण, उवजुत्तपरूवणाए तदवगमादो । अणुवजुत्तपरूवणट्ठमुत्तरसुत्ताणि आगयाणि णेगम-ववहाराणमेगो अणुवजुत्तो आगमदो दव्वकदी अणेया वा अणुवजुत्तो आगमदो दव्वकदी ॥ ५६ ॥ एत्थ पढमो सुत्ताक्यवो घडदें, एगस्साणुवजुत्तो त्ति एगवयणेण णिद्देसादो। ण बिदिओ, अणेयाणमणुवजुत्तो त्ति एगवयणपओगादो ? ण एस दोसो, अणेयाणं पि आगमदव्वकदित्तणेण एयत्तमावण्णाणं एगवयणविसयसंभवेण अणुवजुत्ता त्ति एगवयणणिदेसोववत्तीदो । विषयक उपयोगका नाम स्तुति है। एक मार्गणाविषयक उपयोग धर्मकथा कहलाता है । इस प्रकार ये कृतिके आठ उपयोग कहे गये हैं। शेष प्ररूपणा सुगम है । इन उपयोगोंसे भिन्न श्रुतज्ञानावरणके क्षयोपशमसे सहित अथवा नष्ट हुए क्षयोपशमवाला जीव अनुपयुक्त कहलाता है। शंका-सूत्र में अप्ररूपित यह अनुपयुक्त जीवका लक्षण कैसे जाना जाता है ? समाधान - नहीं, क्योंकि, उपयुक्त जीवकी प्ररूपणा करनेसे उसका ज्ञान स्वयमेव हो जाता है। अनुपयुक्त जीवकी प्ररूपणाके लिये उत्तर सूत्र प्राप्त होते हैं नैगम और व्यवहार नयकी अपेक्षा एक अनुपयुक्त जीव आगमसे द्रव्यकृति है अथवा अनेक अनुपयुक्त जीव आगमसे द्रव्यकृति हैं ॥ ५६ ॥ शंका-यहां सूत्रका प्रथम अवयव घटित होता है, क्योंकि, उसमें एकके लिये 'अणुवजुत्तो' इस प्रकार एक वचनका निर्देश किया गया है। किन्तु द्वितीय अवयव घटित नहीं होता, क्योंकि, उसमें अनेकोंके लिये अणुवजुत्तो' इस प्रकार एक वचनका प्रयोग किया गया है ? समाधान - यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि, आगमद्रव्यकृति रूपसे एकताको प्राप्त अनेकोंके भी एक वचन विषयके सम्भव होनेसे 'अणुवजुत्तो' ऐसा एक वचनका निर्देश घटित होता ही है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001403
Book TitleShatkhandagama Pustak 09
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1949
Total Pages498
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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