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________________ २६०1 छक्खंडागमे वैयणाखंड [४, १, ५४. देवविरइददव्वसुदं गंथो, तेण सह वदि उप्पज्जदि त्ति बोहियबुद्धाइरिएसु ट्ठिदवारहंगसुदणाणं गंथसम । नाना मिनोतीति नाम । अणेगाह पयारेहि अत्थपरिच्छित्तिं णामभेदेण' कुणदि त्ति एगादिअक्खराण बारसंगाणिओगाणं मज्झट्ठिददव्वसुदणाणवियप्पा णाममिदि वुत्तं होदि । तेण णामेण दव्वसुदेण समं सह वट्टदि उप्पज्जदि त्ति सेसाइरिएसु ह्रिदसुदणाणं णामसम । अणियोगो य नियोगो भास विहासा य वट्टिया चेव । एदे अणियोगस्स दु णामा एयट्ठया पंच ॥ ११८ ॥ सृई मुद्दा पडिघो संभवदल-वट्टिया' चेव । अणियोगणिरुत्तीए दिटुंता होंति पंचैते ॥ ११९ ॥) इदि वयणादो अणियोगस्स घोससण्णो णामेगदेसेण अणिओगो वुच्चदे। सच्चभामापदेण अवगम्ममाणत्थस्स तदेगदेसभामासदादो वि अवगमादो। कधं दिस॒तसण्णा अंणि जाता है। उसके साथ रहने अर्थात् उत्पन्न होनेके कारण बोधितवुद्ध आचार्यों में स्थित द्वादशांग श्रुतज्ञान ग्रन्थसम कहलाता है । 'नाना मिनोति' अर्थात् नाना रूपसे जो जानता है उसे नाम कहते हैं; अर्थात् अनेक प्रकारोंसे अर्थज्ञानको नामभेद द्वारा करनेके कारण एक आदि अक्षरों स्वरूप बारह अंगोंके अनुयोगोंके मध्यमें स्थित द्रव्य श्रुतज्ञानके भेद नाम है, यह अभिप्राय है । उस नामके अर्थात् द्रव्यथुतके साथ रहने अर्थात् उत्पन्न होनेके कारण शेष आचार्यों में स्थित श्रुतज्ञान नामसम कहलाता है। __ अनुयोग, नियोग, भाषा, विभाषा और वर्तिका, ये पांच अनुयोगके समानार्थक नाम हैं ॥ ११८॥ अनुयोगकी निरुक्तिमें सूची, मुदा, प्रतिघ, सम्भवदल और वर्तिका, ये पांच दृष्टान्त हैं ॥ ११९ ॥ (देखिये पु. १, पृ. १५४ ) । इस वचनसे घोष संज्ञावाला अनुयोगका अनुयोग (घोषानुयोग ) नामका एक सोनेसे अनयोग कहा जाता है, क्योंकि, सत्यभामा पदसे अवगम्यमान अर्थ उक्त पदके एक देशभूत भामा शब्दसे भी जाना ही जाता है । शंका-अनुयोगकी दृष्टान्त संशा कैसे सम्भव है ? ५ प्रतिषु णाणभेदेन ' इति पाठः । २ नाम अभिधानम्, तेन समं नामसमम् । इदमुक्तं भवति--- यथा स्वनाम कस्यचिच्छिक्षितं जितं मितं परिजितं भवति तथैतदपीत्यर्थः । अनु. टीका सू. १३. ३ प्रतिषु सम्भवदअवट्ठिया' इति पाठः। ४ ष.खं. पु.१, पृ.१५४, ५ प्रतिषु 'घोससण्णामेगदसण' इति पाठः। ६ प्रतिषु 'वुच्चदे ण च सच्चभामापदेणं' इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001403
Book TitleShatkhandagama Pustak 09
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1949
Total Pages498
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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