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________________ २५८] [४, १, ५१. छक्खंडागमे वेयणाखंड अतितीव्रदुःखितानां रुदतां संदर्शने समीपे च ।। स्तनयित्नुविद्युदभ्रेष्वतिवृष्ट्या उल्कनिर्घाते ॥ ११०॥ प्रतिपद्येकः पादो ज्येष्ठामूलस्य पौर्णमास्यां तु । सा वाचनाविमोक्षे छाया पूर्वाह्नवेलायाम् ॥ १११ ॥ सैवापराह्नकाले वेला स्याद्वाचनाविधौ विहिता । सप्तपदी पूर्वाह्नापरायोग्रहण-मोक्षेषु ॥ ११२ ॥ ज्येष्ठामूलात्परतोऽप्यापौषाव्यंगुला' हि वृद्धिः स्यात् । मासे मासे विहिता क्रमेण सा वाचनाछाया ॥ ११३ ॥ एवं क्रमप्रवृद्धया पादद्वयमत्र हीयते पश्चात् । पौषादाजभेष्ठान्ताद् द्वयंगुलमेवेति विज्ञेयम् ॥ ११४ ॥ __ अतिशय तीव्र दुखसे युक्त और रोते हुए प्राणियोंको देखने या समीपमें होनेपर मेघोंकी गर्जना व विजलीके चमकनेपर और अतिवृष्टिके साथ उल्कापात होनेपर [अध्ययन नहीं करना चाहिये ] ॥ ११०॥ जेठ मासकी प्रतिपदा एवं पूर्णमासीको पूर्वाह्न कालमें वाचनाकी समाप्तिमें एक पाद अर्थात् एक वितस्ति प्रमाण [जांघोंकी] वह छाया कही गई है। अर्थात् इस समय पूर्वाल कालमें बारह अंगुल प्रमाण छायाके रह जानेपर अध्ययन समाप्त कर देना चाहिये ॥१११॥ वही समय (एक पाद ) अपराह्नकालमें वाचनाकी विधिमें अर्थात् प्रारम्भ करनेमें कहा गया है। पूर्वाह्नकालमें वाचनाका प्रारम्भ करने और अपराह्नकालमें उसके छोड़नेमें सात पाद (वितस्ति) प्रमाण छाया कही गई है ( अर्थात् प्रातःकाल जब सात पाद छाया हो जावे तब अध्ययन प्रारम्भ करे और अपराह्नमें सात पाद छाया रहजानेपर समाप्त करे)॥ ११२॥ ज्येष्ठ मासके आगे पौष मास तक प्रत्येक मासमें दो अंगुल प्रमाण वृद्धि होती है। यह क्रमसे वाचना समाप्त करनेकी छायाका प्रमाण कहा गया है ।। ११३ ॥ इस प्रकार क्रमसे वृद्धि होनेपर पौष मास तक दो पाद हो जाते हैं। पश्चात् पौष माससे ज्येष्ठ मास तक दो अंगुल ही क्रमशः कम होते जाते हैं, ऐसा जानना चाहिये १ प्रतिषु ' -प्यापौषादयंगुला ' इति पाठः । २ प्रतिषु ‘पौषाद्याज्येष्ठान्ता' इति पाठः। ३ सज्झाये पढ़वणे जंघच्छायं वियाण सत्तपयं । पुव्वण्हे अवरण्हे तावादियं चेव गिट्ठवणे ॥ आसादे दुपदा छाया पुस्समासे चतुप्पदा । वड्ढदे हीयदे चावि मासे मासे दुअंगुला ॥ मूला. ५, ७४-७५. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001403
Book TitleShatkhandagama Pustak 09
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1949
Total Pages498
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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