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२४२] छक्खंडागमे वेयणाखंड
[१, १, १८. गणणकरणाणुववत्तीदो । तदो गणणकदी दव्वट्ठियणयविसया ।
__ गंथकदीए दव्वट्ठियणयविसयत्तमेवं चेव वत्तव्वं, सद्दत्थकत्ताराणं णिच्चत्तेण' विणा गंथकदीए असंभवादो। करणकदी वि दवडियणयविसया, छिंदंत-छिंदमाणदव्वाणं असिवासिआदिकरणाणं च अणिच्चत्ते तदणुववत्तीदो । भावकदी दव्वट्ठियणयविसया ण होदि ।
णामढवणादवियं एसो दव्ववियस्स णिक्खेवो।
भावो दु पज्जवट्ठियपरूवणा एस परमत्थो ॥ ८९ ॥ इदि वयणादो । किं च वट्टमाणपज्जाएणुवलक्खियं दव्वं भावो त्ति भण्णदि । ण च एसो भावो दव्वट्ठियणयविसओ होदि, पज्जवट्ठियणयस्स णिव्विसयत्तप्पसंगादो ति? एत्थ परिहारो वुच्चदे- पज्जाओ दुविहो अत्थ-वंजणपज्जायभेएण । तत्थ अत्थपज्जाओ' एगादिसमयावट्ठाणो सण्णा-सण्णिसंबंधवज्जिओ अप्पकालावट्ठाणादो अइविसेसादो वा । तत्थ
गिने जानेवाले द्रव्यके नष्ट हो जानेपर 'दो' आदि गिनती करना बन नहीं सकता। इस कारण गणनकृति द्रव्यार्थिक नयकी विषय है।
ग्रन्थकृतिके भी द्रव्यार्थिक नयकी विषयताका इसी प्रकार कथन करना चाहिये, क्योंकि शब्द, अर्थ और कर्ताके नित्य होनेके विना ग्रन्थकृति सम्भव नहीं है। करणकृति भी द्रव्यार्थिक नयकी विषय है, क्योंकि, छेदनेवाले व्यक्ति, छदे जानेवाले काष्ठादि द्रव्य और तलवार एवं वसूला आदि करणोंके अनित्य होनेपर वह बन नहीं सकती।
शंका-भावकृति द्रव्यार्थिक नयकी विषय नहीं है, क्योंकि,
नाम, स्थापना और द्रव्य, यह द्रव्यार्थिक नयका निक्षेप है। किन्तु भावनिक्षेप पर्यायार्थिक नयका निक्षेप है, यह परमार्थ सत्य है ॥ ८९ ॥
ऐसा वचन है। दूसरी बात यह कि वर्तमान पर्यायसे उपलक्षित द्रव्य भाव कहा जाता है । सो यह भाव द्रव्यार्थिक नयका विषय नहीं हो सकता, क्योंकि, ऐसा होनेपर पर्यायार्थिक नयके निर्विषय होनेका प्रसंग आता है ?
समाधान-यहां इस शंकाका परिहार कहते हैं, अर्थ और व्यञ्जन पर्यायके भेदसे पर्याय दो प्रकार हैं । उनमें अर्थपर्याय थोड़े समय तक रहनेसे अथवा अति विशेष होनेसे एक आदि समय तक रहनेवाली और संज्ञा-संज्ञी सम्बन्धसे रहित है। और उनमें जो
१ प्रतिषु णिवत्तेण ' इति पाठः ।
२ स. त. १-६. ३ तत्रार्थपर्यायाः सूक्ष्माः क्षणक्षयिणस्तथावाग्गोचरा विषया भवन्ति । पंचा. ता. टीका.१६.
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