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________________ १, १, १५.] कदिअणियोगद्दारे सुत्तावयरणं [२०९ बारसविहं पुराणं जं दिटुं जिणवरेहि सव्वेहिं । तं सव्वं वण्णेदि हु जिणवंसे रायवंसे य ॥ ७७ ॥ पढमो अरहंताणं बिदिओ पुण चक्कवट्टिवंसो दु । तदिओ वसुदेवाणं चउत्थो विज्जाहराणं तु ।। ७८ ।। चारणवंसो तह पंचमो दु छट्ठो य पण्णसमणाणं । सत्तमगो कुरुवंसो अट्ठमओ चापि हरिवंसो ॥ ७९ ॥ णवमो अइक्खुवाणं वंसो दसमो ह कासियाणं तु । वाई एक्कारसमो बारसमो णाहवंसो दु॥ ८० ॥ पूर्वकृते पंचनवतिकोटिपंचाशच्छतसहस्रपंचपदे ९५५०००००५ उत्पाद-व्ययधौव्यादयो निरूप्यन्ते । चूलिका पंचप्रकारा जल-स्थल-माया-रूपाकाशभेदेन । तत्र जलगतायां द्विकोटि-नवशतसहस्रकान्नवतिसहस्रद्विशतपदायां २०९८९२०० जलगमनहेतवो मंत्रौषध-तपोविशेषा निरूप्यन्ते । स्थलगतायां द्विकोटिनवशतसहस्त्रैकान्नवतिसहस्रद्विशतपदायां २०९८९२०० बारह प्रकारका पुराण, जिनवंशों और राजवंशोंके विषयमें जो सब जिनेन्द्रोंने देखा है या उपदेश किया है, उस सबका वर्णन करता है । इनमें प्रथम पुराण अरहन्तोंका, द्वितीय चक्रवर्तियोंके वंशका, तृतीय वासुदेवोंका, चतुर्थ विद्याधरोंका, णवंशका, छठा प्रशाश्रमणोंका, सातवां कुरुवंशका, आठवां हरिवंशका.नौवां इक्ष्वाकुवंशजोंका, दशवां काश्यपोका या काशिकोंका, ग्यारहवां वादियोंका और बारहवां नाथवंशका है ॥ ७७-८०॥ पंचानबै करोड़ पचास लाख पांच पद प्रमाण ९५५०००००५ पूर्वकृतमें उत्पाद, व्यय और धौव्य आदिका निरूपण किया जाता है। जल, स्थल, माया, रूप और आकाशके भेदसे चूलिका पांच प्रकार है। उनमें दो करोड़ नौ लाख नवासी हजार दो सौ पदोंसे युक्त २०९८९२०० जलगता चूलिकामें जलगमनके कारण मंत्र, औषधि एवं तपविशेषका निरूपण किया जाता है। दो करोड़ नौ लाख नवासी हजार दो सौ पदोंसे संयुक्त स्थलगता चूलिकामें हजारों योजन जानेकी १ प्रतिषु 'जगदिट्ठ' इति पाठः। २ ष. खं. पु. १, पृ. ११२. ३ ष. खं. पु. १, पृ. ११३. तत्थ जलगया जलत्थंभण-जलगमणहेदुभूदमंत-तंत-तवच्छरणाणं अग्गित्थंभण-भक्खणासण-पवणादिकारणपओए च वण्णेदि । जयध. १, पृ. १३९. छ, क.२७. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001403
Book TitleShatkhandagama Pustak 09
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1949
Total Pages498
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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