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________________ १, १, ४५.] कदिअणियोगदारे सुत्तावयरणं [१९३ सण्णिदजीवदव्वस्स तत्थुवलंभादो ? ण एस दोसो, एदस्स जीवस्स अंगसुदसण्णा चेव, अणागयअंगसुदपज्जाएण भविस्समाणत्तादो । उवयारेण आगमसण्णा णस्थि, वट्टमाणादीदाणागयआगमाधारधम्माणमभावादो। तव्वदिरित्तणोआगमअंगसुदमंगसुदसदरयणा तस्स हेदुभूददव्वाणि वा । अंगसुदपारओ उवजुत्तो आगमभावंगसुदं । केवलणाणी आगमंगसुदणिमित्तभूदो णोआगमंगसुदं । कथं पज्जायणए उवयारो जुज्जदे ? ण, णेगमणयावलंबणेण दोसाभावादो। एवं णिक्खेव-णयपरूवणा कदा। दोसु अणुगमेसु कस्सेत्थ गहण ? [ पमाणस्स ], ण प्पमेयस्स; तेणेत्थ अहियाराभावादो । पुवाणुपुवीए पढमं । पच्छाणुपुव्वीए बिदिय, णोअंगसुदं पेक्खिदूण अंगम्मि दुब्भाउवलंभादो। जत्थ-तत्थाणुपुत्री एत्थ ण संभवदि, दुब्भावादो । अंगसुदमिदि गुणणाम, आगम संज्ञा युक्त जीव द्रव्य पाया जाता है ? समाधान--यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि, इस जीवकी अंगश्रुत संज्ञा ही है। कारण कि वह भविष्यमें होनेवाली अंगश्रुत पर्यायसे भविष्यमान है। किन्तु उसकी उपचारसे आगम संज्ञा नहीं है, क्योकि वर्तमान, अतीत और अनागत कालम आगमक आधारभूत धर्मोंका वहां अभाव है। अंगश्रुतकी शब्दरचना अथवा उसके हेतुभूत द्रव्य तद्व्यतिरिक्त नोआगमअंगश्रुत कहलाते हैं। अंगश्रुतका पारगामी उपयोग युक्त जीव आगमभावअंगश्रुत है। आगमअंगश्रुतके निमित्तभूत केवलशानी नोआगमअंगभुत कहे जाते हैं । शंका-पर्यायनयमें उपचार कैसे योग्य है ? समाधान-नहीं, क्योंकि, नैगमनयका अवलम्बन करनेसे कोई दोष नहीं आता। इस प्रकार निक्षेप और नयकी प्ररूपणा की गई है। दो अनुगमोंमें किसका यहां ग्रहण है ? [प्रमाणका ग्रहण है], प्रमेयका ग्रहण नहीं है; क्योंकि, उसका यहां अधिकार नहीं है। पूर्वानुपूर्वीसे प्रथम और पश्चादानुपूर्वीसे द्वितीय है, क्योंकि, नोअंगश्रुतकी अपेक्षा करके अंगमें द्वित्व पाया जाता है। यत्र-तत्रानुपूर्वी यहां सम्भव नहीं है, क्योंकि, दो ही भेद हैं । अंगश्रुत यह गुणनाम है, क्योंकि, जो तीनों कालकी १ प्रतिषु आगमसण्णिगद ' इति पाठः । २ प्रतिषु 'अणागम' इति पाठः । छ.क.२५. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001403
Book TitleShatkhandagama Pustak 09
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1949
Total Pages498
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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