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________________ १८१ १, १, ४५.] कदिअणियोगदारे णयपरूवणा क्रिया-गुणाद्यर्थगतभेदेनार्थभेदनात् संग्रह-व्यवहारर्जुसूत्रा अर्थनयाः, शेषाः शब्दपृष्ठतोऽर्थग्रहणप्रवणत्वात् शब्दनयाः । न एकगमो नैगम इति न्यायात् शुद्धाशुद्धपर्यायार्थिनयद्वयविषयः पर्यायार्थिकनैगमः; द्रव्यार्थिकनयद्वयविषयः द्रव्यार्थिकनैगमः'; द्रव्य-पर्यार्थिकनयद्वयविषयः नैगमो द्वंदजः, एवं त्रयो नैगमाः । नव नयाः क्वचिच्छ्रयन्त इति चेन्न नयानामियत्तासंख्यानियमाभावात् । अत्रोपयोगिनी गाथा जावदिया वयणवहा तावदिया चव होति णयवादा । जावदिया णयवादा तावदिया चेव होंति परसमया ॥ ५८ ॥ समाधान - क्रिया और गुणादिक रूप अर्थगत भेदसे अर्थका भेद करनेके कारण संग्रह, व्यवहार व ऋजुसूत्र नय अर्थनय हैं। शेष नय शब्दके पीछे अर्थके ग्रहणमें तत्पर होनेसे शब्दनय हैं। 'जो एकको विषय न करे अर्थात् भेद व अभेद दोनोंको विषय करे वह नैगमनय है' इस न्यायसे जो शुद्धपर्यायार्थिक नय व अशुद्धपर्यायार्थिक नय इन दोनोंके विषयको ग्रहण करनेवाला हो वह पर्यायार्थिक नैगमनय है। शुद्धद्रव्यार्थिक और अशुद्धद्रव्यार्थिक दोनों नयोंके विषयको ग्रहण करनेवाला द्रव्यार्थिक नैगमजय है। द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिक दोनों नयोंके विषयको ग्रहण करनेवाला द्वंदज अर्थात् द्रव्य-पर्यायार्थिक नैगमनय है । इस प्रकार तीन नैगम हैं । शंका – कहींपर नौ नय सुने जाते हैं ? समाधान - नहीं, क्योंकि, 'नय इतने हैं ' ऐसी संख्याके नियमका अभाव है। यहां उपयोगी गाथा जितने वचनमार्ग है उतने ही नयवाद है, तथा जितने नयवाद है उतने ही परसमय हैं ॥ ५८ ॥ १ प्रतिषु ' व्यपर्यायार्थिकनयद्वयविषयः पर्यायाधिकनैगमः ' इति पाठः । २ द्रव्यार्थिकनैगमः पर्यायार्थिकनैगमः द्रव्य-पर्यायार्थिकनैगमश्चेत्येवं त्रयो नैगमोः । तत्र सर्वमेकं सदविशेषात् , सर्व द्विविधं जीवाजीवमेदादित्यादियुक्त्यवष्टम्भबलेन विषयीकृतसंग्रह-व्यवहारनयविषयः द्रव्यार्थिकनैगमः। माजसूत्रादिनयचतुष्टयविषयं युक्त्यवष्टम्भबलेन प्रतिपन्नः पर्यायार्थिकनेगमः। द्रव्यार्थिकमयविषयं पर्यायार्थिकनयविषय प्रतिपनः द्रव्य-पर्यायार्थिकनेंगमः। जयध. १, पु. २४४. ३. खं. पु. १, पृ. ८०. जयध. १, पृ. २४५. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001403
Book TitleShatkhandagama Pustak 09
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1949
Total Pages498
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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