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________________ १, १, ४५.] कदिअणियोगद्दारे णयपरूवणा [१५१ सत्ता' सव्वपयत्था सविस्सरूवा अणंतपज्जाया। भंगुप्पाय-धुवत्ता सप्पडिवक्खा हवदि एक्का ॥५६ ॥ शेषद्वयाद्यनन्तविकल्पसंग्रहप्रस्तारावलम्बनः पर्याय-कलंकांकिततया अशुद्धद्रव्यार्थिकः व्यवहारनयः । यदस्ति न तद् द्वयमतिलंध्य वर्तते इति संग्रह-व्यवहारयोः परस्परविभिन्नोभयविषयालम्बनो नैगमनयः, शब्द-शील-कर्म-कार्य-कारणाधाराधेय-भूत-भविष्यद्वर्तमान-मेयोन्मेयादिकमाश्रित्य स्थितोपचारप्रभव इति यावत् । पर्यायार्थिको नयश्चतुर्विधः ऋजुसूत्र-शब्द-समभिरूद्वैवंभूतभेदेन । तत्र अपूर्वामिकाल अस्तित्व रूप सत्ता उत्पाद, व्यय व धौव्य रूप तीन लक्षणोंसे युक्त समस्त वस्तुविस्तारके सादृश्यकी सूचक होनेसे एक है; उत्पादादि त्रिलक्षण स्वरूप 'सत्' इस प्रकारके शब्दव्यवहार एवं 'सत्' इस प्रकारके प्रत्ययके भी पाये जाने से समस्त पदार्थों में स्थित है; विश्व अर्थात् समस्त वस्तुविस्तारके त्रिलक्षण रूप स्वभावोंसे सहित होनेके कारण सविश्व रूप है, अनन्त पर्यायोंसे सहित है; भंग (व्यय ), उत्पाद व ध्रौव्य स्वरूप है, तथा अपनी प्रतिपक्षभूत असत्तासे संयुक्त है ॥५६॥ शेष दो आदि अनन्त विकल्प रूप संग्रहप्रस्तारका अवलम्बन करनेवाला व्यवहार नय पर्याय रूप कलंकसे युक्त होनेसे अशुद्ध द्रव्यार्थिक नय है। 'जो है वह भेद व अभेद दोनोंका उल्लंघन कर नहीं रहता' इस प्रकार संग्रह और व्यवहार नयोंके परस्पर भिन्न (भेदाभेद) दो विषयोंका अवलम्बन करनेवाला नैगम नय है। अभिप्राय यह कि जो शब्द, शील, कर्म, कार्य, कारण, आधार, आधेय, भूत, भविष्यत, वर्तमान. मेय व उन्मेयादिकका आश्रयकर स्थित उपचारसे उत्पन्न होनेवाला है वह नैगम नय कहा जाता है । पर्यायार्थिक नय ऋजुसूत्र, शब्द, समभिरूढ़ और एवम्भूतके भेदसे चार प्रकार है। इनमें जो तीन कालविषयक अपूर्व पर्यायोको छोड़कर वर्तमान कालविषयक पर्यायको १ प्रतिषु — सत्था' इति पाठः। २ पंचा ८. ३ प्रति 'पर्यायः कलंका-' इति पाठः । ४ [ अशुद्ध- ] द्रव्यार्थिकः पर्यायकलंकांकितद्रव्यविषयः व्यवहारः । जयध. १, पृ. २१९. ५१. खं. पु. १ पृ. ८४. यदस्ति न तवयमतिलंध्यं वर्तत इति नैकगमो नैगमः शब्द-शील-कर्म-कार्यकारणाधाराधेय-सहचार-मान-मेयोन्मेय-भूत-भविष्यद्-वर्तमानादिकमाश्रित्य स्थितोपचारविषयः । जयध. १.प. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001403
Book TitleShatkhandagama Pustak 09
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1949
Total Pages498
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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