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________________ १२४] छक्खंडागमे वेयणाखंड [४, १, ४४. घ |२५/ छदुमत्थत्तणेण गमिय वइसाहजोण्णपक्खदसमीए उजुकूलणदीतीरे जिंभियगामस्स बाहिं छटोववासेण सिलावट्टे आदावेंतेण अवरण्हे पादछायाए केवलणाणमुप्पाइदं । तेणेदस्स कालस्स पमाणं पण्णारसदिवस-पंचमासाहियबारसवासमेत्तं होदि | १.२ । । एत्थुवउज्जतीओ गाहाओ गमइय छदुमत्थत्तं बारसवासाणि पंच मासे य । पण्णरसाणि दिणाणि य तिरयणसुद्धो महावीरो ॥ ३२ ॥ उजुकूलणदीतीरे जंभियगामे बहिं सिलावट्टे । छट्टेणादावेतो अवरण्हे पायछायाए ॥ ३३ ॥ वइसाहजोण्णपक्खे दसमीए खवगसेडिमारूढो । हंतूण घाइकम्मं केवलणाणं समावण्णो' ॥ ३४ ॥ एवं छदुमत्थकालो परूविदो । (संपहि केवलकालो उच्चदे। तं जहा- वइसाहजोण्णपक्खएक्कारसिमादि कादूण जाव पुण्णिमा त्ति पंच दिवसे |५/ पुणो जेट्टप्पहुडि एगूणतीसवासाणि | २९ तं चेव मासमादि छद्मस्थ स्वरूपसे विताकर वैशाख शुक्ल पक्षकी दशमीके दिन ऋजुकूला नदीके तीरपर भिका ग्रामके बाहर षष्ठोपवासके साथ शिलापट्टपर आतापन योग सहित होकर अपराहकालमें पादपरिमित छायाके होनेपर केवलज्ञान उत्पन्न किया। इस लिये इस काल प्रमाण पन्द्रह दिन और पांच मास अधिक बारह वर्ष मात्र होता है [१२ वर्ष ५ मास १५ दिन] । यहां उपयुक्त गाथायें रत्नत्रयसे विशुद्ध महावीर भगवान् बारह वर्ष, पांच मास और पन्द्रह दिन छदमस्थ अवस्थामें विताकर ऋजुकूला नदीके तीरपर जृम्भिका ग्राममें बाहर शिलापट्टपर षष्ठोपवासके साथ आतापन योग युक्त होते हुए अपराल काल में पादपरिमित छाया पर वैशाख शुक्ल पक्षकी दशमीके दिन क्षपक श्रेणीपर आरूढ़ होकर एवं घातिया कर्मीको नष्ट कर केवलज्ञानको प्राप्त हुए ॥ ३२-३४॥ इस प्रकार छद्मस्थकालकी प्ररूपणा की। अब केवलकाल कहते हैं। वह इस प्रकार है-वैशाख शुक्ल पक्षकी एकादशीको मादि करके पूर्णिमा तक पांच दिन [५], पुनः ज्येष्ठसे लेकर उनतीस वर्ष [२९], उसी १ नयध. १, पृ. ७९-८०. २ अ-काप्रयोः 'एक्कारस- ' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001403
Book TitleShatkhandagama Pustak 09
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1949
Total Pages498
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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