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प्राक्-कथन
षट्खण्डागम सातवें भाग खुद्दाबन्धके प्रकाशित होनेके दो वर्ष पश्चात् यह आठवां भाग बन्धस्वामित्व-विचय पाठकोंके हाथ पहुंच रहा है । इस भागके साथ षट्खण्डागमके प्रथम तीन खण्ड पूर्णतः विद्वत्संसारके सन्मुख उपस्थित हो गये । कागज, मुद्रण व व्यवस्थादि सम्बन्धी अनेक कठिनाइयों व असुविधाओंके होते हुए भी यह कार्य गतिशील बना ही रहा है, इसका श्रेय ग्रन्थमालाके संस्थापक श्रीमन्त सेठजी व अन्य अधिकारी, मेरे सहयोगी पं. बालचन्द्रजी शास्त्री तथा सरस्वती प्रेसके मैनेजर श्रीयुत टी. एम्. पाटीलको है जो इस कार्यको विशेष रुचि और अपनत्वके साथ निवाहते जा रहे हैं । इन सबका मैं हृदयसे अनुगृहीत हूं। उन्हींके सहयोगके बलपर आगेका कार्य भी समुचित रूपसे चलता रहेगा, ऐसी आशा है । नवें भागका मुद्रण प्रारम्भ हो गया है ।
नागपुर महाविद्यालय, नागपुर
७-९-१९४७
हीरालाल
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