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________________ ३२] छक्खंडागमे बंधसामित्तविचओ [१, ८. णीचागोदाणि, सासणम्मि बंधवोच्छेदे जादे पच्छा उवरिं गंतूण संजदासंजदम्मि उदयवोच्छेदादो, तिरिक्खाणुपुव्वीए असंजदसम्माइट्ठिम्हि उदयवोच्छेदुवलंभादो । एवं मज्झिमचदुसंठाणाणि, सासणम्मि बंधे थक्के संते उवरि गंतूण सजोगिम्हि उदयवोच्छेदादो । एवं चेव मज्झिमचदुसंघडणाणि, सासणम्मि बंधे थक्के संते उवरि अपमत्त-उवसंतकसाएसु कमेण दोणं दोण्णमुदयक्खयदंसणादो। एवं अप्पसत्थविहायगदीए, सासणम्मि बंधे थक्के संते उवरि सजोगिम्हि उदयवोच्छेदादो । एवं दुभग-अणादेज्जाणं वत्तव्वं, सासणम्मि बंधे थक्के उवरि असंजदसम्मादिहिम्हि उदयवोच्छेदो । एवं दुस्सरस्स वि वत्तव्यं, सासणम्मि बंधे थक्के सजोगिकेवलिम्हि उदयवोच्छेदादो । किं सोदएण किं परोदएण किमुभएण बझंति त्ति पुच्छाए उत्तरो वुच्चदे । तं जहाथीणगिद्धित्तियमित्थिवेदं तिरिक्खाउअं तिरिक्खगइ चदुसंठाणाणि चदुसंघडणाणि तिरिक्खगदिपाओग्गाणुपुव्वि उज्जोवं अप्पसत्थविहायगदिमणताणुबंधिचदुक्कं दुभग-दुस्सर-अणादेज्जणीचागोदाणि च मिच्छादिद्वि-सासणसम्माइट्ठिणो सोदएण वि परोदएण वि बंधंति, विरोहा योंका पूर्वमें बन्धव्युच्छिन्न होता है, तत्पश्चात् उदयका व्युच्छेद होता है, क्योंकि सासादनगुणस्थानमें बन्धका व्युच्छेद हो जानेपर पश्चात् ऊपर जाकर संयतासंयत गुणस्थानमें उदयका व्युच्छेद होता है, तथा तिर्यग्गतिप्रायोग्यानुपूर्वीके उदयका व्युच्छेद असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानमें पाया जाता है । इसी प्रकार मध्यम चार संस्थानोंका पूर्वमें बन्ध व्युच्छिन्न होता है, तत्पश्चात् उदयका व्युच्छेद होता है, क्योंकि सासादन गुणस्थानमें बन्ध के रुक जानेपर ऊपर जाकर सयोगकेवली गुणस्थानमें उदयका व्युच्छेद होता है। इसी प्रकार ही मध्यम चार संहनन हैं, क्योंकि, सासादनगुणस्थानमें इनके बन्धके रुक जानेपर ऊपर अप्रमत्तसंयत और उपशान्तकषाय गुणस्थानों में क्रमसे दो दो संहननोंका उदयक्षय देखा जाता है । इसी प्रकार अप्रशस्तविहायोगतिका भी कथन करना चाहिये, क्योंकि, सासादनगुणस्थानमें बन्धके रुक जानेपर ऊपर सयोगकेवलीमें उदयका व्युच्छेद होता है। इसी प्रकार दुर्भग और अनादेयका कथन करना चाहिये, क्योंकि, सासादनमें जानेपर ऊपर असंयतसम्यग्दृष्टि में उदयका व्यच्छेद होता है। इसी प्रकार दुस्वरका भी कहना चाहिये, क्योंकि, सासादनमें बन्धके रुक जानेपर सयोगकेवलीमें उदयका व्युच्छेद होता है। __ 'उपर्युक्त प्रकृतियां क्या स्वोदयसे क्या परोदयसे या क्या स्व-परोदय उभयरूपसे बंधती हैं?' इस प्रश्नका उत्तर कहते हैं। वह इस प्रकार है-स्त्यानगृद्धित्रय, स्त्रीवेद, तिर्य: गायु, तिर्यग्गति, चार संस्थान, चार संहनन, तिर्यग्गतिप्रायोग्यानुपूर्वी, उद्योत, अप्रशस्तविहायोगति, अनन्तानुबन्धिचतुष्क, दुर्भग, दुस्वर, अनादेय और नीचगोत्र, इन प्रकृतियोंको मिथ्यादृष्टि और सासादनसम्यग्दृष्टि स्वोदयसे भी और परोदयसे भी बांधते हैं, क्योंकि, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001402
Book TitleShatkhandagama Pustak 08
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1947
Total Pages458
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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