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________________ ३, ३१३.] सम्मत्तमग्गणाए बंधसामित्त ३०९ एदं पि सुगमं । हस्स-रदि-भय-दुगुंछाणं को बंधो को अबंधो ? ॥ ३११ ॥ मुगमं । असंजदसम्माइटिप्पहुडि जाव अपुवकरणउवसमा बंधा । अपुव्वकरणुवसमद्धाए चरिमसमयं गंतूण बंधो वोच्छिजदि । एदे बंधा, अवसेसा अबंधा ॥ ३१२ ॥ एदं पि सुगमं । देवगइ-पंचिंदियजादि-वेब्विय-तेजा-कम्मइयसरीर-समचउरसं-- संठाण-वेउब्वियअंगोवंग-वण्ण-गंध-रस-फास-देवाणुपुब्बी-अगुरुअलहुअउवघाद-परघाद-उस्सास-पसत्थविहायगदि-तस-बादर-पजत्त-पत्तेयसरीरथिर-सुभ-सुभग-सुस्सर-आदेज्ज-णिमिण-तित्थयरणामाणं को बंधो को अबंधो? ॥ ३१३॥ सुगमं । यह सूत्र भी सुगम है। हास्य, रति, भय और जुगुप्साका कौन बन्धक और कौन अबन्धक है? ॥ ३११ ॥ यह सूत्र सुगम है। असंयतसम्यग्दृष्टिसे लेकर अपूर्वकरण उपशमक तक बन्धक हैं। अपूर्वकरण उपशमकालके अन्तिम समयको प्राप्त होकर बन्ध व्युच्छिन्न होता है । ये बन्धक हैं, शेष अबन्धक हैं ॥ ३१२॥ , यह सूत्र भी सुगम है। देवगति, पंचेन्द्रिय जाति, वैक्रियिक, तैजस व कार्मण शरीर, समचतुरस्रसंस्थान, वैक्रियिकशरीरांगोपांग, वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श, देवानुपूर्वी, अगुरुलघु, उपघात, परघात, उच्छ्वास, प्रशस्तविहायोगति, त्रस, बादर, पर्याप्त, प्रत्येकशरीर, स्थिर, शुभ, सुभग, सुस्वर, आदेय, निर्माण और तीर्थंकर नामकर्मका कौन बन्धक और कौन अबन्धक है ? ॥ ३१३ ॥ यह सूत्र सुगम है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001402
Book TitleShatkhandagama Pustak 08
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1947
Total Pages458
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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