SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 406
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३, ३०६.] सम्मत्तमग्गणाए बंधसामित्तं [ ३७७ णवरि आउवं णत्थि ॥ ३०२॥ कुदो ? सम्मामिच्छाइटिस्सेव सव्वुवसमसम्माइट्ठीणमाउअस्स बंधाभावादो । पच्चक्खाणावरणचउक्कस्स को बंधो को अबंधो ? ३०३ ॥ सुगमं । असंजदसम्मादिट्ठी संजदासजदा [बंधा] । एदे बंधा, अवसेसा अबंधा ॥ ३०४ ॥ एदं पि सुगम, सुदणाणपरूवणापरूविदत्थत्तादो। . पुरिसवेद-कोधसंजलणाणं को बंधो को अबंधो ? ॥ ३०५ ॥ सुगमं । असंजदसम्मादिटिप्पहुडि जाव अणियट्टी उवसमा बंधा। अणियट्टिउवसमद्धाए सेसे संखेज्जे भागे गंतूण बंधो वोच्छिज्जदि । एदे बंधा, अवसेसा अबंघा ॥ ३०६॥ विशेष इतना है कि उनके आयु कर्मका बन्ध नहीं है ॥ ३०२ ॥ क्योंकि, सम्यग्मिथ्यादृष्टिके समान ही सर्व उपशमसम्यग्दृष्टियोंके आयुके बन्धका अभाव है। प्रत्याख्यानावरणचतुष्कका कौन बन्धक और कौन अबन्धक है ? ॥ ३०३ ॥ यह सूत्र सुगम है। असंयतसम्यग्दृष्टि और संयतासंयत [ बन्धक ] हैं। ये बन्धक हैं, शेष अबन्धक हैं ॥ ३०४॥ यह भी सूत्र सुगम है, क्योंकि, इसके अर्थकी प्ररूपणा श्रुतज्ञानप्ररूपणामें की . जा चुकी है। पुरुषवेद और संज्वलन क्रोधका कौन बन्धक और कौन अबन्धक है ? ॥ ३०५ ॥ यह सूत्र सुगम है। असंयतसम्यग्दृष्टिसे लेकर अनिवृत्तिकरण उपशमक तक बन्धक हैं । अनिवृत्तिकरणउपशमककालके शेषमें संख्यात बहुभाग जाकर बन्ध व्युच्छिन्न होता है । ये बन्धक हैं, शेष अबन्धक है ॥ ३०६॥ .. .४८. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001402
Book TitleShatkhandagama Pustak 08
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1947
Total Pages458
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy