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३, २६७ ) लेस्सामग्गणाए बंधसामित्तं
[३४३ बंधवोच्छिण्णट्ठाणं च सुगमं । धुवबंधीण मिच्छाइट्ठिम्मि बंधो चउविहो । अण्णत्थ तिविहो, धुवाभावादो । सेसाणं बंधो सादि-अद्भुवो, अदुवबंधित्तादो ।
पच्चक्खाणचउक्कमोघं ॥ २६६ ॥
बंधोदया समं वोच्छिण्णा, संजदासंजदम्मि तेसिं दोण्णमक्कमेण वोच्छेदुवलंभादो । सोदय-परोदओ, दोहि वि पयारेहि बंधाविरोहादों। णिरंतरो, एगसमएण बंधुवरमाभावादो । पच्चया सुगमा, अपच्चक्खाणपच्चयतुल्लत्तादो । मिच्छाइट्ठि-सासणसम्मादिट्ठीसु बंधो तिगइसंजुत्तो । सम्मामिच्छाइट्ठि-असंजदसम्मादिट्ठीसु दुगइसंजुत्तो। उवरि देवगइसंजुत्तो। तिगइमिच्छाइटि-सासणसम्मादिहि-सम्मामिच्छादिट्ठि-असंजदसम्मादिट्ठिणो सामी । दुगइसंजदासंजदा सामी। बंधद्धाणं बंधवोच्छिण्णवाणं च सुगमं । मिच्छाइविम्हि बंधो चउव्विहो । उवरि तिविहो, धुवाभावादो।
मणुस्साउअस्स ओघभंगो ॥२६७ ॥
बन्धाध्वान और बन्धव्युच्छिन्नस्थान सुगम हैं। ध्रुवबन्धी प्रकृतियोंका मिथ्यादृष्टि गुणस्थानमें चारों प्रकारका बन्ध होता है । अन्य गुणस्थानों में तीन प्रकारका बन्ध होता है, क्योंकि, वहां ध्रव बन्धका अभाव है। शेष प्रकृतियोंका बन्ध सादि व अधूव होता है क्योंकि, वे अध्रुवपन्धी हैं ।
प्रत्याख्यानावरणचतुष्ककी प्ररूपणा ओघके समान है ॥ २६६ ॥
प्रत्याख्यानावरणचतुष्कका बन्ध और उदय दोनों साथमै व्युच्छिन्न होते हैं, क्योंकि, संयतासंयत गुणस्थानमें दोनोंका एक साथ व्युच्छेद पाया जाता है। स्वोदयपरोदय बन्ध होता है, क्योंकि, दोनों भी प्रकारोंसे उसके बन्धमें कोई विरोध नहीं है। निरन्तर बन्ध होता है, क्योंकि, एक समयसे उसके बन्धविश्रामका अभाव है। प्रत्यय सुगम हैं, क्योंकि, वे अप्रत्याख्यानावरणके प्रत्ययोंके समान हैं। मिथ्यादृष्टि और सासादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थानों में तीन गतियोंसे संयुक्त बन्ध होता है। सम्यग्मिथ्यादृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानों में दो गतियोंसे संयक्त बन्ध होता है। ऊपर देवगतिसे संयुक्त बन्ध होता है । तीन गतियोंके मिथ्यादृष्टि, सासादनसम्यग्दृष्टि, सम्यग्मिथ्यादृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि स्वामी हैं। दो गतियोंके संयतासंयत स्वामी हैं। बन्धाध्वान और बन्धव्युच्छिन्नस्थान सुगम हैं । मिथ्यादृष्टि गुणस्थानमें चारों प्रकारका बन्ध होता है। ऊपर तीन प्रकारका बन्ध होता है, क्योंकि, वहां ध्रुव बन्धका अभाव है।
मनुष्यायुकी प्ररूपणा ओघके समान है ॥ २६७ ॥
१ प्रतिषु ' बंधविरोहादो' इति पाठः ।
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