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३४० छक्खंडागमे बंधसामित्तविचओ
[३, २६३. सासणसम्मादिट्ठीसु ओरालियमिस्सपच्चओ अवणेयव्वो। तिगइसंजुत्तो बंधो मिच्छाइट्ठिसासणसम्मादिट्ठीसु । सम्मामिच्छाइट्ठि-असंजदसम्मादिट्ठीसु दुगइसंजुत्तो। उवरि देवगइसंजुत्तो। तिगइमिच्छाइटि-सासणसम्मादिहि-सम्मामिच्छादिट्ठि-असंजदसम्मादिट्ठिणो, दुगइसंजदासंजदा, मणुसगइसंजदा च सामी । मिच्छाइटिप्पहुडि जाव पमत्तसंजदो त्ति अद्धाणं । बंधवोच्छेदट्ठाणं सुगमं । सादि-अडवो बंधो, अद्धवबंधित्तादो ।
मिच्छत्त-णqसयवेद-एइंदियजादि-हुंडसंठाण-असंपत्तसेवट्टसंघडण-आदाव-थावरणामाणं को बंधो को अबंधो ? ॥ २६३ ॥
सुगमं । मिच्छाइट्ठी बंधा । एदे बंधा, अवसेसा अबंधा ॥२६४ ॥
मिच्छत्तस्स बंधोदया समं वोच्छिण्णा । णqसयवेद-हुंडसंठाण-असंपत्तैसेवट्टसंघडणएइंदिय-आदाव-थावरणामाणं बंधवोच्छेदो चेव, उदयाभावादो । मिच्छत्तस्स सोदएण बंधो, उदयाभावे बंधाणुवलंभादो। णउंसयवेद हुंडसंठाण-असंपत्तसेवट्टसंघडण-एइंदिय-आदाव-थावराणं
इतनी है कि मिथ्यादृष्टि और सासादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थानों में औदारिकमिश्र प्रत्यय कम करना चाहिये। मिथ्याडष्टि और सासादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थानों में उनका बन्ध तीन गतियोंसे संयुक्त होता है। सम्यग्मिथ्यादृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानों में दो गतियोंसे संयुक्त बन्ध होता है। ऊपर उनका देवगतिसंयुक्त बन्ध होता है। तीन गतियोंके मिथ्यादृष्टि,सासादनसम्यग्दृष्टि, सम्यग्मिथ्यादृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि; दो गतियोंके संयतासंयत, तथा मनुष्यगतिके संयत स्वामी हैं। मिथ्यादृष्टिसे लेकर प्रमत्तसंयत तक बन्धाध्वान है। बन्धव्युच्छेदस्थान सुगम है । सादि व अध्रुव बन्ध होता है, क्योंकि, वे अध्रुवबन्धी हैं ।
मिथ्यात्व, नपुंसकवेद, एकेन्द्रिय जाति, हुण्डसंस्थान, असंप्राप्तसृपाटिकासंहनन, आताप और स्थावर नामकर्मका कौन बन्धक और कौन अबन्धक है ? ॥ २६३ ॥
यह सूत्र सुगम है। मिथ्यादृष्टि बन्धक हैं । ये बन्धक हैं, शेष अबन्धक हैं ॥ २६४ ॥
मिथ्यात्वका बन्ध और उदय दोनों साथ व्युच्छिन्न होते हैं। नपुंसकवेद, हुण्डसंस्थान, असंप्राप्तसृपाटिकासंहनन, एकेन्द्रिय, आताप और स्थावर नामकर्मका केवल बन्धव्युच्छेद ही है, क्योंकि, यहां इनके उदयका अभाव है। मिथ्यात्वका स्वोदयसे बन्ध होता है, क्योंकि, उदयके अभावमें उसका बन्ध पाया नहीं जाता। नपुंसकवेद, हुण्डसंस्थान, असंप्राप्तसृपाटिकासंहनन, एकेन्द्रिय, आताप और स्थावरका बन्ध परोदय
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