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________________ ३, २२४.] णाणमग्गणाए बंधसामित्तं [२९७ केवलणाणीसु सादावेदणीयस्स को बंधो को अबंधो ? ॥२२३॥ सुगमं । सजोगिकेवली बंधा । सजोगिकेवलिअद्धाएं चरिमसमयं गंतूण बंधो वोच्छिजदि । एदे बंधा, अवसेसा अबंधा ॥ २२४ ॥ एदस्स बंधो पुवं वोच्छिज्जदि, उदओ पच्छा वोच्छिज्जदि; सजोगि-अजोगिचरिमसमएसु बंधोदयवोच्छेदुवलंभादो । बंधो सोदय-परोदओ, अद्धवोदयत्तादो । णिरंतरो, पडिवक्खपयडीए बंधाभावादो। सच्चमणजोगो असच्चमोसमणजोगो सच्चवचिजोगो असच्चमोसवचिजोगो ओरालियकायजोगो ओरालियमिस्सकायजोगो कम्मइयकायजोगो त्ति सत्त एदस्स बंधपच्चया। बंधो अगइसंजुत्तो, एत्थ गइबंधेण विरुद्धबंधादो। मणुसा सामी, अण्णत्थ केवलीणमभावादो । बंधद्धाणं णत्थि, एक्कम्हि गुणट्ठाणे अद्धाणविरोहादो । अजोगिचरिमसमए बंधो वोच्छिज्जदि । सादि-अद्धवो बंधो, अद्धवबंधित्तादो। केवलज्ञानियोंमें सातावेदनीयका कौन बन्धक और कौन अबन्धक है ? ॥ २२३ ॥ यह सूत्र सुगम है। सयोगकेवली बन्धक हैं। सयोगकेवलिकालके अन्तिम समयको जाकर बन्ध व्युच्छिन्न होता है । ये बन्धक हैं, शेष अबन्धक हैं ॥ २२४ ॥ इसका बन्ध पूर्वमें व्युच्छिन्न होता है, उदय पश्चात् व्युच्छिन्न होता है; क्योंकि, सयोगकेवली और अयोगकेवली गुणस्थानोंके अन्तिम समयोंमें क्रमसे उसके बन्ध और उदयका व्युच्छेद पाया जाता है। बन्ध उसका स्वोदय परोदय होता है, क्योंकि, वह अध्रुवोदयी प्रकृति है । निरन्तर बन्ध होता है, क्योंकि, वहां प्रतिपक्ष प्रकृतिके बन्धका अभाव है। सत्यमनोयोग, असत्य-मृषामनोयोग, सत्यवचनयोग, असत्य मृषावचनयोग, औदारिककाययोग, औदारिकमिश्रकाययोग और कार्मणकाययोग, ये सात इसके बन्धप्रत्यय हैं। बन्ध गतिबन्ध रहित होता है, क्योंकि, यहां गतिबन्धसे विरुद्ध बन्ध है। मनुष्य स्वामी हैं, क्योंकि, अन्य गतियों में केवलियोंका अभाव है। बन्धाध्वान नहीं है, क्योंकि, एक गुणस्थानमें अध्वानका विरोध है । अयोगकेवलीके अन्तिम समयमें बन्ध व्युच्छिन्न होता है । सादि व अध्रुव बन्ध होता है, क्योंकि, वह अध्रुवबन्धी है।। १ प्रतिषु 'सजोगकेवली बंधाए' इति पाठः। २ प्रतिषु 'अत्थाण' इति पाठः। ...३८. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001402
Book TitleShatkhandagama Pustak 08
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1947
Total Pages458
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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