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________________ ३, १.] णिदेसपरूवणं बंधेण य संजोगो पोग्गलदव्वेण होइ जीवस्स । बंधो पुण विण्णेओ बंधविओओ पमोक्खो' दु ॥ १॥ । एदस्स बंधस्स सामित्तं बंधसामित्तं, तस्स विचओ [बंधसामित्तविचओ, विचओ] विचारणा मीमांसा परिक्खा इदि एयहो । तस्स बंधसामित्तविचयस्स इमो दुविहो णिद्देसो त्ति जेणेदं सुत्तं देसामासियं तेणेत्थ पओजणं पि परूवेदव्वं । किमट्टमेत्थ बंधस्स सामित्तं उच्चदे ? संत-दव्व-खेत्त-फोसण-कालंतर-भावप्पाबहुव-गइरागइबंधगत्तेण अवगयाणं चोद्दसगुणट्ठाणाणं अणवगदे बंधविसेसे बंधगत्तं बंधकारणगइरागईओ च सम्मं ण णव्वंति त्ति काऊण चोदसगुणहाणाणि अहिकिच्च अप्पाउआणमणुगहढे बंधविसेसो उच्चदे । तस्स णिद्देसो दुविहो ओघादेसभेएण । तिविहो किण्ण होदि ? ण, वयणपओगो हि णाम परट्ठो । ण च परो वि दुणयवदिरित्तो अत्थि जेण तिविहा एयविहा वा परूवणा होज्ज त्ति । ओघणिद्देसो दव्वट्ठियणयाणुग्गहकरो, इयरो वि पज्जवट्ठियणयस्स । ___ जीवका पुद्गल द्रव्यसे जो बन्ध सहित संयोग होता है उसे बन्ध और बन्धक वियोगको मोक्ष जानना चाहिये ॥१॥ इस बन्धका जो स्वामित्व है वह बन्धस्वामित्व है । उसका जो विचय है वह बन्धस्वामित्वविचय है । विचय, विचारणा, मीमांसा और परीक्षा, ये समानार्थक शब्द हैं । 'उस बन्धस्वामित्वविचयका यह दो प्रकारका निर्देश है ' चूंकि यह सूत्र देशामर्शक है इस लिये यहां प्रयोजन भी कहना चाहिये । शंका-यहां बन्धके स्वामित्वको किस लिये कहा जाता है ?. ___ समाधान-सत्त्व, द्रव्य, क्षेत्र, स्पर्शन, काल, अन्तर, भाव, अल्पबहुत्व और गत्यागति बन्धक रूपसे जाने गये चौदह गुणस्थानोंके बन्धविशेषके अज्ञात होनेपर बन्धकत्व व बन्धनिमित्तक गति-आगतिका भले प्रकार ज्ञान नहीं हो सकता, ऐसा जानकर चौदह गुणस्थानोंका अधिकार करके अल्पायु शिष्यों के अनुग्रहके लिये बन्धविशेष कहा जाता है। उसका निर्देश ओघ और आदेशके भेदसे दो प्रकार है। शंका-वह निर्देश तीन प्रकारका क्यों नहीं होता ? समाधान नहीं होता, क्योंकि वचनका प्रयोग परके लिये होता है, और पर भी दो नयोको छोड़कर है नहीं जिससे तीन प्रकार या एक प्रकार प्ररूपणा होसके। __ ओघनिर्देश द्रव्यार्थिक नयवालोंका और इतर अर्थात् आदेशनिर्देश पर्यायार्थिक नयवालोंका अनुग्रहकर्ता है। १ प्रतिषु ‘पमोक्खा' इति पाठः । 4 4 ......... Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001402
Book TitleShatkhandagama Pustak 08
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1947
Total Pages458
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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