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________________ पंचिंदिय-पंचिंदियपज्जत्तएसु बंधसामित्त आहारसरीर-आहारअंगोवंगणामाणं को बंधो को अबंधो ? ॥ १३३॥ सुगमं । अप्पमत्तसंजदा अपुवकरणपट्टउवसमा खवा बंधा । अपुब. करणद्धाए संखेज्जे भागे गंतूण बंधो वोच्छिज्जदि । एदे बंधा, अवसेसा अबंधा ॥ १३४ ॥ सुगमं । तित्थयरणामाए को बंधो को अबंधो ? ॥ १३५ ॥ सुगम । असंजदसम्मादिटिप्पहुडि जाव अपुवकरणपइट्ठउवसमा खवा बंधा। अपुवकरणद्धाए संखेज्जे भागे गंतॄण बंधो वोच्छिज्जदि । एदे बंधा, अवसेसा अबंधा ॥ १३६ ॥ आहारकशरीर और आहारकशरीरांगोपांग नामकर्मीका कौन बन्धक और कौन अबन्धक है ? ॥ १३३॥ यह सूत्र सुगम है। अप्रमत्तसंयत और अपूर्वकरणप्रविष्ट उपशमक व क्षपक बन्धक हैं । अपूर्वकरणकालके संख्यात बहुभाग जाकर बन्ध व्युच्छिन्न होता है। ये बन्धक हैं, शेष अवन्धक हैं ॥ १३४ ॥ यह सूत्र सुगम है। तीर्थंकर नामर्कमका कौन बन्धक और कौन अबन्धक है ? ॥ १३५ ॥ यह सूत्र सुगम है। असंयतसम्यग्दृष्टिसे लेकर अपूर्वकरणप्रविष्ट उपशमक और क्षपक तक बन्धक हैं। अपूर्वकरणकालके संख्यात बहुभाग जाकर बन्ध व्युच्छिन्न होता है । ये बन्धक हैं, शेष अबन्धक हैं ॥ १३६ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.001402
Book TitleShatkhandagama Pustak 08
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1947
Total Pages458
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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