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________________ पंचिदिय-पंचिदियपज्जत्तरसु बंधसा मित्तं णिद्दा - पलाणं को बंधो को अबंधो ? ॥ १०७ ॥ सुगमं । १, १०९. ] मिच्छाइट्टिपहुडि जाव अपुव्वकरणपविट्ठसुद्धिसंजदेसु उवसमा खवा बंधा । अपुव्वकरणसंजदद्धाए संखेज्जदिमं भागं गंतूण बंधो वोच्छिज्जदि । एदे बंधा, अवसेसा अबंधा ॥ १०८ ॥ एदस्स अत्थो उच्चदे - बंधो एदासिं पुत्रं वोच्छिज्जदि पच्छा उदओ, अपुव्वखीणकसासु कमेण बंधोदयवोच्छेददंसणादो । सोदय- परोदएण सव्वगुणट्ठाणेसु बंघो, अद्धुवोदयत्तादो । णिरंतरो, ध्रुवबंधित्तादो । पच्चया सव्वगुणडाणे ओघपच्चयतुल्ला । मिच्छाइट्ठी चउगइसंजुत्तं, सासणो तिगइसंजुत्तं, सम्मामिच्छाइट्ठी असंजद सम्माइट्ठी दुगइसंजुत्तं, सेसा देवगइ संजुत्तं । गइसामित्तद्धाण- बंधवोच्छेदट्ठाणाणि सुगमाणि । मिच्छाइट्ठिस्स चउविवो बंधो । सेसेसु तिविहो, धुवत्ताभावादो । सादावेदणीयस्स को बंधो को अबंधो ? ॥ १०९ ॥ [ १७७ निद्रा और प्रचलाका कौन बन्धक और कौन अबन्धक है ? ॥ १०७ ॥ यह सूत्र सुगम है । मिथ्यादृष्टिसे लेकर अपूर्वकरणप्रविष्टशुद्धिसंयतों में उपशमक व क्षपक तक बन्धक हैं । अपूर्वकरण संयतकालके संख्यातवें भाग जाकर बन्धव्युच्छेद होता है । ये बन्धक हैं, शेष अबन्धक हैं ॥ १०८ ॥ । इस सूत्रका अर्थ कहते हैं- इनका बन्ध पूर्वमें व्युच्छिन्न होता है और उदय पश्चात्, क्योंकि, अपूर्वकरण व क्षीणकषाय गुणस्थानोंमें क्रमसे इनके बन्ध और उदयका व्युच्छेद देखा जाता है । सब गुणस्थानोंमें इनका बन्ध स्वोदय-परोदयसे होता है, क्योंकि, वे अधुवोदयी हैं । निरन्तर बन्ध होता है, क्योंकि, ध्रुवबन्धी हैं । प्रत्यय सब गुणस्थानोंमें ओघप्रत्ययों के समान हैं । मिथ्यादृष्टि चारों गतियोंसे संयुक्त, सासादनसम्यग्दृष्टि तीन गतियों से संयुक्त, सम्यग्मिथ्यादृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि दो गतियोंसे संयुक्त, तथा शेष गुणस्थानवर्ती देवगतिसे संयुक्त बांधते हैं । गतिस्वामित्व, अध्वान और बन्धव्युच्छेदस्थान सुगम हैं । मिथ्यादृष्टिके चारों प्रकारका बन्ध होता है । शेष गुणस्थानोंमें तीन प्रकारका बन्ध होता है, क्योंकि, वहां ध्रुव बन्धका अभाव है । सातावेदनीयका कौन बन्धक और कौन अबन्धक है १ ॥ १०९ ॥ छ. नं. २३. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001402
Book TitleShatkhandagama Pustak 08
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1947
Total Pages458
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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