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________________ १६० छक्खंडागमे बंधसामित्तविचओ [३, १०२. अणादेज्ज-णिमिण-णीचागोद-पंचतराइयाणं सोदओ बंधो, एत्थ एदासिं धुवोदयदंसणादो । सादासाद-सोलसकसाय-छण्णोकसाय-आदावुज्जोव-बादर-सुहुम-पज्जत्त-अपज्जत्त-पत्तेय-साहारणसरीर-जसकित्ति-अजसकित्तीणं सोदय-परोदओ बंधो, अद्धवोदयत्तादो। ओरालियसरीरहुंडसंठाण-उवघादाणं पि सोदय-परोदओ बंधो, विग्गहगदीए उदयाभावे वि बंधुवलंभादो । तिरिक्खगइपाओग्गाणुपुवीए वि सोदय-परोदओ, गहिदसरीरेसु उदयाभावे वि बंधदसंणादो । परघादुस्सासाणं पि सोदय-परोदओ बंधो, अपज्जत्तद्धाए उदयाभावे वि बंधदसणादो । अवसेसाणं परोदओ बंधो, एत्थ तासिं सव्वदो उदयाभावादो।। __ पंचणाणावरणीय-णवदंसणावरणीय-मिच्छत्त-सोलसकसाय-भय-दुगुंछा-तिरिक्ख-मणुस्साउ-ओरालिय-तेजा-कम्मइयसरीर-वण्ण-गंध-रस-फास-अगुरुगलहुग-उवघाद-णिमिण-पंचतराइयाणं णिरंतरो बंधो, एगसमएण बंधुवरमाभावादो । साादासाद-सत्तणोकसाय-मणुसगइ-एइंदियबीइंदिय-तीइंदिय-च उरिदिय-पंचिंदियजादि-छसंठाण-ओरालियसरीरअंगोवंग-छसंघडण-मणुसगइ स्थावर, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, दुर्भग, अनादेय, निर्माण, नीचगोत्र और पांच अन्तराय, इनका स्वोदय बन्ध होता है, क्योंकि, इनका ध्रुव उदय देखा जाता है। साता व असाता वेदनीय, सोलह कषाय, छह नोकषाय, आताप, उद्योत, बादर, सूक्ष्म, पर्याप्त, अपर्याप्त, प्रत्येक, साधारण शरीर, यशकीर्ति और अयशकीर्ति, इनका खोदय परोदय बन्ध होता है, क्योंकि ये अध्रुवोदयी प्रकृतियां हैं। औदारिकशरीर, हुण्डसंस्थान और उपघातका भी स्वोदय-परोदय बन्ध होता है, क्योंकि, विग्रहगतिमें इनके उदयका अभाव होनेपर भी बन्ध पाया जाता है । तिर्यग्गतिप्रायोग्यानुपूर्वीका भी स्वोदय-परोदय बन्ध होता है, क्योंकि, जिन जीवोंने शरीर ग्रहण करलिया है उनके तिर्यग्गतिप्रायोग्यानुपूर्वीके उदयका अभाव होनेपर भी बन्ध देखा जाता है। परघात और उच्छ्वासका भी स्वोदय-परोदय बन्ध होता है, क्योंकि, अपर्याप्तकालमें उदयाभावके होनेपर भी उनका बन्ध देखा जाता है । शेष प्रकृतियोंका परोदय वन्ध होता है, क्योंकि, यहां उनके उदयका सर्वदा अभाव है।। पांच ज्ञानावरणीय, नौ दर्शनावरणीय, मिथ्यात्व, सोलह कषाय, भय, जुगुप्सा, तिर्यगायु, मनुष्यायु, औदारिक, तैजस व कार्मण शरीर, वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श, अगुरुलघु, उपघात, निर्माण और पांच अन्तराय, इनका निरन्तर बन्ध होता है, क्योंकि, एक समयसे इनके बन्धविश्रामका अभाव है। साता व असाता वेदनीय, सात नोकषाय, मनुष्यगति, एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, श्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, पंचेन्द्रिय जाति, छह संस्थान, औदारिक प्रतिषु · पंचणाणावरणीय-सादासाद- पति पाठः । . ३ प्रतियु 'थायर ' इति पाठः ! Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001402
Book TitleShatkhandagama Pustak 08
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1947
Total Pages458
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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