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३, ७४. ] पंचिदियतिरिक्खअपज्जत्तेसु पंचाणावरणीयादीणं बंधसामित्तं
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पंचिंदियतिरिक्खअपजत्ता पंचणाणावरणीय णवदंसणावरणीयसादासाद-मिच्छत्त-सोलसकसाय-णवणोकसाय-तिरिक्खाउ - मणुस्साउ - तिरिक्खगइ - मणुस्सगइ - एइंदिय-बीइंदिय-तीइंदिय - चउरिंदिय-पंचिंदियजादि-ओरालिय-तेजा - कम्मइयसरीर - छसंडाण - ओरालियसरीरअंगोवंग छ संघडण वण्ण-गंध-रस- फास-तिरिक्खगड़-मणुसगइपाओगाणुपुबी अगुरुगलहुग-उवघाद- परघाद- उस्सास -आदा उज्जीव-दोविहायगइ-तस-यावर बादर-सुहुम-पज्जत्त- पत्ते य-साहारणसरीर-थिराथिर- सुहासुह-सुगभ-[ दुभंग- ] सुस्सर दुस्सर-आदेज्ज-अणादेज्ज-जसकित्ति अजसकित्तिणिमिणणीचुच्चा गोद पंचंतराइयाणं को बंधो को अबंधो ? || ७३ ॥
सुमं ।
सव्वे एदे बंधा अबंधा णत्थि ॥ ७४ ॥
थी गिद्धतिय- मणुस्सा उ-मणुस्सगइ - एइंदिय - बीइंदिय - तीइंदिय - चउरिदिंयजादि-हुंड
पंचेन्द्रिय तिर्यंच अपर्याप्तों में पांच ज्ञानावरणीय, नौ दर्शनावरणीय, साता व असाता वेदनीय, मिथ्यात्व, सोलह कषाय, नौ नोकषाय, तिर्यगायु, मनुष्यायु, तिर्यग्गति, मनुष्यगति, एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्दिय, पंचेन्द्रिय जाति, औदारिक तैजस व कार्मण शरीर, छह संस्थान, औदारिकशरीरांगे/ पांग, छह संहनन, वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श, तिर्यग्गतिव मनुष्यगति प्रायोग्यानुपूर्वी, अगुरुलघु, उपघात, परघात, उच्छ्वास, आताप, उद्योत, दो विहायोगतियां, त्रस, स्थावर, बादर, सूक्ष्म, पर्याप्त, प्रत्येक, साधारणशरीर, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, सुभग, [ दुर्भग ], सुस्वर, दुस्वर, आदेय, अनादेय, यशकीर्ति, अयशकीर्ति, निर्माण, नीचगोत्र, ऊंचगोत्र और पांच अन्तराय, इनका कौन बन्धक और कौन अबन्धक है ? ॥ ७३ ॥
यह सूत्र सुगम है ।
ये सब पंचेन्द्रिय तिर्यंच अपर्याप्त बन्धक हैं, अबन्धक नहीं हैं ॥ ७४ ॥ स्त्यानगृद्धित्रय, मनुष्यायु, मनुष्यगति, एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, श्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय
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