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________________ १०६] छक्खंडागमे बंधसामित्तविचओ [ ३, ५५. लियसरीरअंगोवंग-वजरिसहसंघडण-वण्ण-गंध-रस-फास-अगुरुवलहुवउवघाद-परघाद-उस्सास-पसत्थविहायगइ-तस-बादर-पजत्त-पत्तेयसरीरथिराथिर-[सुहा-] सुह-सुगम-सुस्सर-आदेज्ज-जसकित्ति-णिमिण-पंचंतराइयाणं को बंधो को अबंधो? ॥ ५५ ॥ सुगमं । मिच्छादिटिप्पहुडि जाव असंजदसम्मादिट्ठी बंधा। एदे बंधा, अबंधा णत्थि ॥ ५६ ॥ एदेण देसामासियसुत्तेण सूइदत्थपरूवणं कस्सामो- एत्थ उदयादो बंधो पुत्वं पच्छा वा वोच्छिण्णो त्ति विचारो णत्थि, एत्थ तस्स असंभवादो । पंचणाणावरणीय-चउदंसणावरणीय-पंचिंदियजादि-तेजा-कम्मइय-वण्ण-गंध-रस-फास-अगुरुगलहुग-तस-बादर-पज्जत्त-थिराथिर-सुभासुभ-अजसकित्ति-णिमिण पंचंतराइयाणं सोदओ बंधो, एदेसिं धुवोदयत्तादो । णिद्दापयला-सादासाद-बारसकसाय-हस्स-रदि-अरदि-सोग-भय-दुगुंछाणं सोदय-परोदओ बंधो, अद्धवोदयत्तादो । उवघाद-परघाद-उस्सास-पत्तेयसरीराणं मिच्छाइट्ठिम्हि सोदय-परोदओ बंधो । सेसेसु वर्षभसंहनन, वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श, अगुरुलघु, उपघात, परघात, उच्छ्वास, प्रशस्तविहायोगति, त्रस, बादर, पर्याप्त, प्रत्येकशरीर, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, सुभग, सुस्वर, आदेय, यशकीर्ति, निर्माण और पांच अन्तराय, इनका कौन बन्धक और कौन अबन्धक है ? ॥५५॥ यह सूत्र सुगम है। मिथ्यादृष्टिसे लेकर असंयतसम्यग्दृष्टि तक बन्धक हैं । ये बन्धक हैं, अबन्धक नहीं हैं ॥५६॥ इस देशामर्शक सूत्रके द्वारा सूचित अर्थको प्ररूपणा करते हैं- यहां उदयसे बन्ध पूर्वमें या पश्चात् व्युच्छिन्न होता है, यह विचार नहीं है; क्योंकि, यहां उसकी सम्भावना नहीं है। पांच ज्ञानावरणीय, चार दर्शनावरणीय, पंचेन्द्रियजाति, तैजस व कार्मण शरीर, वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श, अगुरुलघु, त्रस, बादर, पर्याप्त, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, अयशकीर्ति, निर्माण और पांच अन्तराय, इनका स्वोदय बन्ध होता है, क्योंकि, ये ध्रुवोदयी प्रकृतियां हैं । निद्रा, प्रचला, साता व असाता वेदनीय, बारह कषाय, हास्य, रति, अरति, शोक, भय और जुगुप्साका स्वोदय-परोदय बन्ध होता है, क्योंकि, ये अध्रुवोदयी प्रकृतियां हैं । उपघात, परघात, उच्छ्वास और प्रत्येकशरीर, इनका मिथ्या Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001402
Book TitleShatkhandagama Pustak 08
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1947
Total Pages458
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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