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________________ ३, ४४.] रियगदौए पंचणाणावरणीयादीणं बंधसामित्तं ९३ आदेसेण गदियाणुवादेण णिरयगदीए णेरइएसु पंचणाणावरणछदंसणावरण-सादासाद-बारसकसाय-पुरिसवेद-हस्स-रदि-अरदि-सोग-- भय-दुगुंछा-मणुसगदि-पंचिंदियजादि-ओरालिय-तेजा-कम्मइयसरीरसमचउरससंठाण-ओरालियसरीरअंगोवंग-वजरिसहसंघडण-वण्ण-गंधरस-फास-मणुसगइपाओग्गाणुपुवि-अगुरुलहुग-उवघाद-परघादउस्सास-पसत्थविहायगदि-तस-बादर-पजत्त-पत्तेयसरीर-थिराथिर-सुहा-- सुह-सुभग-सुस्सर-आदेज्ज-जसकित्ति-अजसकित्ति-णिमिणुच्चागोद-- पंचंतराइयाणं को बंधो को अबंधो ? ॥ ४३ ॥ ___ एदं देसामासिययुच्छासुतं, तेणेदेण सूइदसधपुच्छाओ एत्थ वत्तव्वाओ । एवं पुच्छिदसिस्सणिच्छय जणणहमुत्तरसुत्तं भणदि मिच्छाइटिप्पहुडि जाव असंजदसम्मादिट्ठी बंधा । एदे बंधा, अबंधा णत्थि ॥ ४४ ॥ एदं देसामासियसुत्तं, सामित्तद्धाणाणं चेव पावणादो । तेणेदेण सूइदत्थाणं परवणं आदेशकी अपेक्षा गतिमार्गणानुसार नरकगतिमें नारकियोंमें पांच ज्ञानावरण, छह दर्शनावरण, सातावेदनीय, असातावेदनीय, बारह कपाय, मुरुषवेद, हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, मनुष्यगति, पंचेन्द्रियजाति, औदारिक तैजस व कार्मण शरीर, समचतुरस्रसंस्थान, औदारिकशरीरांगोपांग, वर्षभसंहनन, वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श, मनुष्यगतिप्रायोग्यानुपूर्वी, अगुरुअलघुक, उपघात, परघात, उच्छ्वास, प्रशस्तविहायोगति, त्रस, बादर, पर्याप्त, प्रत्येकशरीर, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, सुभग, सुस्वर, आदेय, यशकीर्ति, अयशकीर्ति, निर्माण, उच्चगोत्र और पांच अन्तराय, इन काँका कौन बन्धक और कौन अबन्धक है ? ॥४३॥ यह पृच्छासूत्र देशामर्शक है, इसी कारण इसके द्वारा सूचित सब पृच्छाओंको यहां कहना चाहिये । इस प्रकार पृच्छायुक्त शिष्यके निश्चयजननार्थ उत्तर सूत्र कहते हैं मिथ्यादृष्टिको आदि लेकर असंयतसम्यग्दृष्टि तक बन्धक हैं। ये बन्धक हैं, अबन्धक नहीं हैं ॥४४॥ - यह देशामर्शक सूत्र है, क्योंकि, वह बन्धस्वामित्व और बन्धाध्वानका ही निरूपण करता है । इसी कारण इसके द्वारा सूचित अर्थोकी प्ररूपणा करते हैं- पांच ज्ञानावरणीय, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001402
Book TitleShatkhandagama Pustak 08
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1947
Total Pages458
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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