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छक्खंडागमे खुद्दाबंधो
[२, १, ११. सरीरपज्जत्तीए पज्जत्तयदस्स अपज्जत्तमवणिय परघादो दोहं विहायगदीणमेक्कदरे च पक्खित्ते अट्ठावीसाए द्वाणं होदि । भंगा पंच सदा छावत्तरा होंति | ५७६ || आणापाणपज्जत्तीए पज्जत्तयदस्स उस्सासे पक्खित्ते एगुणतीसाए द्वाणं होदि । मंगा तेत्तिया चेव | ५७६ || भासापज्जत्तीए पज्जत्तयदस्स सुस्सर-दुस्सरेसु एक्कदरे पक्खित्ते तीसाए हाणं होदि । मंगा एक्कारस सदाणि बावण्णाहियाणि |११५२ ।
द्वितीय प्रस्तार ( गाथा २१ ) की अपेक्षा भंगोंके जाननेका यंत्र वज्रवृषभ. वज्रनाराच. नाराच. अर्धनाराच.| कीलित | असंप्राप्ति.
समचतु. | न्यग्रोध.
स्वाति. | कुब्जक.
वामन.
हुण्डक.
यशकीर्ति अयशकीर्ति
आदेय | अनादेय
।
७२
सुभग | दुर्भग
शरीरपर्याप्तिको पूर्ण करलेनेवाले पंचेन्द्रिय तिर्यंचके पूर्वोक्त छब्बीस प्रकृतियोंवाले उदयस्थानमेंसे अपर्याप्तको निकालकर व परधात और दो विहायोगतियोमेसे कोई एक, इन दो प्रकृतियोंके मिला देनेपर अट्ठाईस प्रकृतियोंवाला उदयस्थान हो जाता है। यहां भंग ( सुभग-दुर्भग, आदेय-अनादेय, यशकीर्ति-अयशकीर्ति, छह संस्थान, छह संहनन तथा प्रशस्त-अप्रशस्त विहायोगति, इन विकल्पोंके भेदसे) पांच सौ छयत्तर होते हैं ( ५७६)।
___ आनप्राणपर्याप्तिको पूर्ण करलेनेवाले पंचेन्द्रिय तिर्यंचके पूर्वोक्त अट्ठाईस प्रकृतियोंमें उच्छ्वास मिलादेनेसे उनतीस प्रकृतियोंवाला उदयस्थान हो जाता है। यहां भंग उतने ही अर्थात् पांच सौ छयत्तर ही हैं (५७६)।
भाषापर्याप्तिको पूर्ण करलेनेवाले पंचेन्द्रिय तिर्यंचके पूर्वोक्त उनतीस प्रकृतियों में सुस्वर और दुस्वरमेंसे कोई एक मिलादेनेसे तीस प्रकृतियोंवाला उदयस्थान होता है। यहां (सुभग-दर्भग, आदेय-अनादेय, यशकीर्ति-अयशकीर्ति, छह संस्थान, छह संहनन. प्रशस्त-अप्रशस्त विहायोगति और सुस्वर-दुस्वर, इनके विकल्पसे) भंग ग्यारह सौ बावन हो जाते हैं (१९५२)।
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