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________________ २, १, ११.] सामित्ताणुगमे उदयट्ठाणपरूवणा गाथा नं.९ और १० में बतलाई गई दो भिन्न भिन्न प्रकारकी प्रस्तारप्रक्रियाका स्पष्टीकरण अक्षपरिवर्तनकी प्रक्रियासे होता है जो निम्न प्रकार है गाथा नं. ११ में जो अक्षपरिवर्तनका क्रम बतलाया गया है वह द्वितीय प्रस्तारकी अपेक्षा (गाथा नं. १० के अनुसार ) सम्भव है । प्रथम प्रस्तारकी अपेक्षा अक्षपरिवर्तनकी निरूपक गाथा यहां नहीं दी गई। यह गाथा गोम्मटसार (जी. कां.) के प्रमाद प्रकरणमें इस प्रकार पायी जाती है तदियक्खो अंतगदो आदिगदे संकमेदि विदियवखो। दोण्णि वि गंतूणंतं आदिगदे संकमेदि पढमक्खो ॥ ३९ ॥ अर्थात् तृतीय अक्ष जब आलापक्रमसे अपने अन्त तक जाकर व फिरसे लौटकर एक साथ अपने प्रथम स्थानको प्राप्त हो जाता है, तब द्वितीय अक्ष बदलकर दूसरे स्थानको प्राप्त होता है। इस प्रकार दोनों ही अक्ष अन्तको प्राप्त होकर व फिरसे लौटकर जब अपने अपने प्रथम स्थानको प्राप्त होते हैं तब प्रथमाक्ष प्रथम स्थानको छोड़कर द्वितीय स्थानपर पहुंच जाता है। इसके अनुसार प्रकृतमें आलापभेदोंका क्रम निम्न प्रकार होगा१ सुभग, आदेय, यशकीर्ति, समचतुरन., वज्रवृषभ. वज्रनाराच. नाराच. अर्धनाराच. कीलित. असंप्राप्ता. न्यग्रोध. वज्रवृषभ. वज्रनाराच. नाराच. अर्धनाराच. इस प्रकार जैसे समचतुरस्र सहित ६भंग बने हैं वैसे ही न्यग्रोध सहित ६भंग बनेंगे और फिर शेष चार संस्थानोंके भी क्रमशः छह छह भंग होंगे जिनका योग होगा ३६ । फिर ये ही ३६ भंग अयशकीर्ति के साथ होंगे । फिर अनादेयके यशकीर्तिके साथ ३६ और अयशकीर्तिके साथ ३६ भंग होकर ७२ भंग होंगे। पश्चात् दुर्भगको लेकर ३६ . आदेय यशकीर्ति सहित, ३६ आदेय-अयशकीर्ति सहित, ३६ अनादेय-यशकीर्ति सहित और ३६ अनादय-अयशकीर्ति सहित ऐसे १४४ भंग होंगे। इस प्रकार इन सबका योग होगा ३६+३६+७२+१४४२८८ । ir n o 5 w gvoo Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001401
Book TitleShatkhandagama Pustak 07
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1945
Total Pages688
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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