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२, १, ११.] सामित्ताणुगमे उदयट्ठाणपरूवणा
[१३ समासमिच्छामो त्ति अट्ठारससु तिगुणिदेसु चउप्पण्णभंगा होति ५४ । एत्थ सामित्तादिवियप्पा णेरइयाणं व वत्तव्वा । णवरि बेइंदियादीणं तीस एक्कत्तीसाणं कालो जहण्णेण अंतोमुहुत्तं उक्कस्सेण जहाकमेण वारस वस्साणि, एगुणवण्णरादिदियाणि, छम्मासा अंतोमुहुत्तणा ।
पंचिंदियतिरिक्खस्स सामण्णेण एक्कवीस-छव्वीस-अट्ठावीस-गुणतीस-तीस एकत्तीसेत्ति छउदयट्ठाणाणि । २१ । २६ । २८ । २९ ३० । ३१ । वुज्जोवुदयविरहिदपंचिंदियतिरिक्खस्स पंच उदयट्ठाणाणि होति । कुदो ? तत्थेक्कत्तीसाए उदयाभावा । वुज्जोवुदयसंजुत्तपंचिंदियतिरिक्खस्स वि पंचेवुदयट्ठाणाणि होति । कुदो ? तत्थद्वी
उद्योत रहित उद्योत सहित २१ प्रकृतियोंवाले स्थानभंग ३ ३। ये छह भंग पूर्वके ही समान
, ३ . ३, होनेसे नहीं जोड़े गये।
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अब हमें द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय, इन तीनों विकलेन्द्रिय जीवोंके उदयस्थानोंके भंगोंका योग चाहिये । अतएव अठारहको तीनसे गुणा कर देनेपर चौवन भंग हो जाते हैं (५४)। यहां स्वामित्व आदिके विकल्प जैसे नारकी जीवोंकी प्ररूपणामें पहले कह आये हैं उसी प्रकार यहां भी कहना चाहिये । विशेषता केवल इतनी है कि द्वीन्द्रियादि जीवोंके तीस और इकतीस प्रकृतियोंवाले उदय स्थानोंका काल कमसे कम अन्तर्मुहूर्त, और अधिकसे अधिक अन्तर्मुहूर्त कम क्रमशः बारह वर्ष, उनचास रात्रि दिवस और छह मास होता है। अर्थात् तीस और इकतीस प्रकृतियोंवाले उदयस्थानोंका जघन्य काल तो तीनों विकलेन्द्रिय जीवोंके अन्तर्मुहूर्त ही होता है, किन्तु उत्कृष्ट काल द्वीन्द्रियोंके अन्तर्मुहूर्त कम बारह वर्ष, त्रीन्द्रियोंके अन्तर्मुहूर्त कम उनचास रात्रि-दिन और चतुरिन्द्रिय जीवोंके अन्तर्मुहूर्त कम छह मास होता है।
पंचेन्द्रिय तिर्यंचके सामान्यतः इक्कीस, छव्वीस, अट्ठाईस, उनतीस, तीस और इंकतीस प्रकृतियोंवाले छह उदयस्थान होते हैं । २१ । २६ । २८ । २९ । ३० । ३१ । उद्योत
तोदयसे रहित पंचेन्द्रिय तिर्यचके पांच उदयस्थान होते है, क्योंकि, उसके इकतीस प्रकृतियोंवाला उदयस्थान नहीं होता । उद्योतोदय सहित पंचेन्द्रिय तिर्यंचके भी पांच
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