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________________ २, १, ११.] सामित्ताणुगमे उदयट्ठाणपरूवणा [११ बेइंदियस्स विग्गहगदीए वट्टमाणस्स । तं केवचिरं ? जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्सेण बे समया। जसगित्तिउदएण एक्को भंगो। कुदो? अपज्जत्तोदएण सह जसकित्तीए उदयाभावा । अजसगित्तिउदएण बे भंगा । कुदो ? पज्जत्तापज्जत्ताणमुदएहि सह अजसगित्तिउदयस्स संभवुवलंभा । एत्थ सव्वभंगसमासो तिण्णि | ३ ।। ____एदासु एक्कवीसपयडीसु आणुपुबिमवणेदूण गहिदसरीरपढमसमए ओरालियसरीर-इंडसंठाण-ओरालियसरीरअंगोवंग-असंपत्तसेवट्टसंघडण-उवघाद-पत्तेयसरीरेसु पक्खित्तेसु छब्बीसाए द्वाणं होदि । एत्थ भंगसमामो तिण्णि ।३।। सरीरपज्जत्तीए पज्जत्तयदस्स पुव्वुत्तपयडीसु अपज्जत्तमवणिय परघादअप्पसत्थविहायगदी पक्खिसासु अट्ठावीसाए हाणं होदि । एत्थ जसकित्तिउदएण एक्को भंगो, अजसकित्तिउदएण वि एक्को चेव । कुदो ? पडिवक्खपयडीणमभावादो। एत्थ सव्वभंगा दो चेव | २।। आणापाणपज्जत्तीए पज्जत्तयदस्स पुव्वुत्तपयडीसु उस्सासे पक्खित्ते एगुण समाधान-यह उदयस्थान उस जीवके होता है जो द्वीन्द्रिय है और विग्रहगतिमें वर्तमान है। शंका-यह उदयस्थान कितने काल तक रहता है ? समाधान-कमसे कम एक समय और अधिकसे अधिक दो समय। यशकीर्तिके उदयके साथ एक ही भंग होता है, क्योंकि, अपर्याप्तोदयके साथ यशकीर्तिका उदय नहीं होता । अयशकीर्तिके उदय सहित दो भंग होते हैं, क्योंकि, पर्याप्त और अपर्याप्तके उदयके साथ अयशकीर्तिका उदय होना संभव है। इस प्रकार यहां सब भंगोंका योग हुआ तीन (३)। __ इन इक्कीस प्रकृतियोंमेसे आनुपूर्वीको छोड़कर शरीरग्रहण करनेके प्रथम समयमें औदारिकशरीर, हुंडसंस्थान, औदारिकशरीरांगोपांग, असंप्राप्तसृपाटिकासंहनन, उपघात और प्रत्येकशरीर, इन छह प्रकृतियोंको मिला देनेसे छव्वीस प्रकृतियोंवाला उदयस्थान हो जाता है । यहां भंगोंका योग (पूर्वोक्तानुसार ही) होता है तीन (३)। शरीरपर्याप्ति पूर्ण करलेनेवाले द्वीन्द्रिय जीवके पूर्वोक्त छन्वीस प्रकृतियोंमेंसे अपर्याप्तको निकालकर परघात और अप्रशस्तविहायोगति मिलादेनेसे अट्ठाईस प्रकृतियों थान हो जाता है। यहां यशकीर्तिके उदय सहित एक ही भंग है। और अयशकीर्तिके उदय सहित भी एक ही भंग है, क्योंकि, यहां भी प्रतिपक्षी प्रकृतियोंका भभाव है। यहां सब भंग हैं केवल दो (२)। आनप्राणपर्याप्ति पूर्ण करलेनेवाले द्वीन्द्रिय जीवके पूर्वोक्त अट्ठाईस प्रकृतियोंमें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001401
Book TitleShatkhandagama Pustak 07
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1945
Total Pages688
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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