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________________ ५९१] छक्खंडागमे खुदाबंधो [२, ११-२, ७५... केत्तियो विसेसो ? बादरवणप्फदिकाइयपज्जत्तमेत्तो। सुहुमवणप्फदिकाइया अपज्जत्ता असंखेज्जगुणा ॥ ७५ ॥ को गुणगारो ? असंखेज्जा लोगा। सुहुमवणप्फदिकाइया पज्जत्ता संखेज्जगुणा ।। ७६ ॥ को गुणगारो ? संखेज्जा समया । सुहुमवणप्फदिकाइया विसेसाहिया ॥ ७७ ॥ केत्तिओ विसेसो ? सुहुमवणप्फदिकाइयअपज्जत्तमेत्तो । वणप्फदिकाइया विसेसाहिया ॥ ७८ ॥ केत्तियो विसेसो ? बादरवणप्फदिकाइयमेत्तो । णिगोदजीवा विसेसाहिया ॥ ७९ ॥ केत्तिओ विसेसो ? बादरवणफदिकाइयपत्तेयसरीरबादरणिगोदपदिविदमेत्तो । एवं सव्वजीवेसु महादंडओ समत्तो । ___ एवं खुद्दाबंधो समत्तो। विशेष कितना है ? विशेष बादर वनस्पतिकायिक पर्याप्त जीवों के बराबर है । सूक्ष्म वनस्पतिकायिक अपर्याप्त जीव असंख्यातगुगे हैं ।। ७५ ।। गुणकार क्या है ? असंख्यात लोक गुणकार है। सूक्ष्म वनस्पतिकायिक पर्याप्त जीव संख्यातगुणे हैं ॥ ७६ ॥ गुणकार क्या है ? संख्यात समय गुणकार है। सूक्ष्म वनस्पतिकायिक जीव विशेष अधिक हैं ।। ७७ ॥ विशेष कितना है ? विशेष सूक्ष्म वनस्पतिकायिक अपर्याप्त जीवोंके बराबर है। वनस्पतिकायिक विशेष अधिक हैं ।। ७८ ॥ विशेष कितना है ? बादर वनस्पतिकायिक जीवोंके बराबर है। निगोदजीव विशेष अधिक हैं ।। ७१ ॥ विशेष कितना है ? बादर निगोदप्रतिष्ठित बादरवनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर जीवोंके बराबर है। इस प्रकार सब जीवों में महादण्डक समाप्त हुआ इस प्रकार क्षुद्रकबंध समाप्त हुआ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001401
Book TitleShatkhandagama Pustak 07
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1945
Total Pages688
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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