________________
५३०]
छक्खंडागमे खुद्दाबंधो . [२, ११, ३५. सुहुमेइंदियपज्जत्ता संखेज्जगुणा ॥ ३५॥
कुदो ? मज्झिमपरिणामेसु बहूणं जीवाणं संभवादो। किमट्ठ संखेज्जगुणं ? विस्ससादो ।
सुहुमेइंदिया विसेसाहिया ॥ ३६ ॥ केत्तियमेत्तो विसेसो ? सुहुमेइंदियअपज्जत्तमेत्तो । एइंदिया विसेसाहिया ॥ ३७॥ केत्तियमेत्तो विसेसो ? बादरेइंदियमेत्तो। कायाणुवादेण सव्वत्थोवा तसकाइया ॥ ३८॥ कुदो ? तसेसुप्पत्तिपाओग्गपरिणामेसु जीवाणं अदिव तणुत्तादो' । ण च सुहपरि
सूक्ष्म एकेन्द्रिय अपर्याप्तोंसे सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्त जीव संख्यातगुणे हैं
क्योंकि, मध्यम परिणामों में बहुतसे जीवोंकी संभावना है। शंका- संख्यातगुणे किस लिये हैं ? समाधान- स्वभावसे संख्यातगुणे हैं । सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्तोंसे सूक्ष्म एकेन्द्रिय जीव विशेष अधिक हैं ॥ ३६ ॥ शंका- विशेषका प्रमाण कितना है ? समाधान- विशेषका प्रमाण सूक्ष्म एकेन्द्रिय अपर्याप्त जीवोंके बराबर है । सूक्ष्म एकेन्द्रियोंसे एकेन्द्रिय जीव विशेष अधिक हैं ॥ ३७ ॥ शंका- विशेषका प्रमाण कितना है ? समाधान- विशेषका प्रमाण बादर एकेन्द्रिय जीवोंके बराबर है। कायमार्गणाके अनुसार त्राकायिक जीव सबमें स्तोक हैं ॥ ३८॥ क्योंकि, प्रसोंमें उत्पन्न होनके योग्य परिणामोंमें जीव अत्यन्त थोड़े पाये जाते
१ प्रतिषु तुदिव दणत्तादो' इति पाठः ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org