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२, ११, २१. ]
असंखेज्जदिभागो ।
अपात्रहुगागमे इंदियमग्गणा
बीइंदिया विसेसाहिया ॥ १९ ॥
दो तिहमिंदियाणं सामग्गीदो दोण्हमिंदियाणं सामग्गीए पाएणुवलंभादो । एत्थ विसेसपमाणं तीइंदियाणमसंखेज्जदिभागो । तेसिं को पडिभागो ! आवलियाए असंखेज्जदिभागो ।
अनिंदिया अनंतगुणा ॥ २० ॥
कुदो ? अनंतादीदकालसंचिदा होदूण वयवदिरित्तत्तादो । एत्थ गुणगारो अभवसिद्धिएहि अनंतगुणो । कुदो ? बीइंदियदव्वोवहिद अणिदियप्पमाणत्तादो ।
एइंदिया अनंतगुणा ॥ २१ ॥
कुदो ? एइंदियउवलद्धिकारणाणं बहूणमुवलंभादो । एत्थ गुणगारो अभवसिद्धिएहिंतो सिद्धेहिंतो सव्वजीवरासि पढमवग्गमूलादो वि अनंतगुणो । कुदो ! अणिदिओवट्टिदअनंतभागहीणसव्व जीवरासिपमाणत्तादो । अण्णेण वि पयारेण
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यहां विशेषका प्रमाण त्रीन्द्रिय जीवोंका असंख्यातवां भाग है ।
शंका
समाधान - आवलीका असंख्यातवां भाग प्रतिभाग है ।
त्रीन्द्रियोंसे द्वीन्द्रिय जीव विशेष अधिक हैं ।। १९ ॥
क्योंकि, तीन इन्द्रियोंकी सामग्रीसे दो इन्द्रियोंकी सामग्री प्रायः सुलभ है ।
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- उनका प्रतिमाग क्या है ?
समाधान- आवलीका असंख्यातवां भाग प्रतिभाग है ।
द्वीन्द्रियोंसे अनिन्द्रिय जीव अनन्तगुणे हैं ॥ २० ॥
क्योंकि, अनिन्द्रिय जीव अनन्त अतीत कालों में संचित होकर व्यय से राहत है । यहां गुणकार अभव्यसिद्धिक जीवोंसे अनन्तगुणा है, क्योंकि, वह द्वीन्द्रिय द्रव्यसे भाजित अनिन्द्रिय राशिप्रमाण है ।
एकेन्द्रिय जीव अनन्तगुणे हैं ॥ २१ ॥
क्योंकि, एक इन्द्रियकी उपलब्धिके कारण बहुत पाये जाते हैं। यहां गुणकार अभव्यसिद्धिक, सिद्ध और सर्व जीवराशिके प्रथम वर्गमूल से भी अनन्तगुणा है, क्योंकि, वह अनिन्द्रिय जीवोंसे अपवर्तित अनन्त भाग हीन ( अर्थात् सराशिले हीन ) सर्व
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