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________________ २, ११, १५.] अप्पाबहुगाणुगमे गदिमग्गणा [५२३ एत्थ गुणगारो सेडीए असंखेज्जदिभागो असंखेज्जाणि सेडिपढमवग्गमूलाणि । कुदो १ णेरइयविक्खंभसूचिगुणिदपंचिंदियतिरिक्खजोणिणिअवहारकालोवट्टिदजगसेडिपमाणत्तादो। देवा संखेज्जगुणा ॥ १२॥ एत्थ गुणगारो तप्पाओग्गसंखेज्जरूवाणि । कुदो ? देवअवहारकालेण तेत्तीसरूवगुणिदेण पंचिंदियतिरिक्खजोणिणीणमवहारकाले भागे हिदे संखेज्जरूवोवलंभादो। देवीओ संखेज्जगुणाओ ॥ १३ ॥ एत्थ गुणगारो बत्तीसरूवाणि संखेज्जरूवाणि वा । सिद्धा अणंतगुणा ॥ १४ ॥ कुदो ? देवीहि ओवट्टिदसिद्धेहितो अणंतरूवावलंभादो । तिरिक्खा अणंतगुणा ॥ १५॥ कुदो ? अभवसिद्धिएहि सिद्धेहि जीववग्गमूलादो च अणंतगुणरूवाणं सिद्धेहि भजिदतिरिक्खेसुवलंभादो । यहां गुणकार जगश्रेणीक असंख्यातवें भागमात्र असंख्यात श्रेणीप्रथमवर्गमूल है; क्योंकि, वे नारकियोंकी विष्कम्भसूचीसे गुणित पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिमतियों के अवहारकालसे अपवर्तित जगश्रेणीप्रमाण हैं। योनिमती तियंचोंसे देव संख्यातगुणे हैं ।। १२ ॥ यहां गुणकार तत्प्रायोग्य संख्यात रूप हैं, क्योंकि, तेतीस रूपोंसे गुणित देवअवहारकालका पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिमतियोंके अवहारकालमें भाग देनेपर संख्यात रूप उपलब्ध होते हैं। देवोंसे देवियां संख्यातगुणी हैं ॥ १३ ॥ यहां गुणकार बत्तीस रूप या संख्यात रूप हैं। देवियोंसे सिद्ध अनन्तगुणे हैं ॥ १४ ॥ क्योंकि, देवियोंसे सिद्धोंके अपवर्तित करनेपर अनन्त रूप उपलब्ध होते हैं। सिद्धोंसे तिर्यच अनन्तगुणे हैं ॥ १५ ॥ क्योंकि, सिद्धोंसे तिर्यंचोंके भाजित करनेपर अभव्यसिद्धिक, सिख और जीवराशिके धर्गमूलसे अनन्तगुणे रूप उपलब्ध होते हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001401
Book TitleShatkhandagama Pustak 07
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1945
Total Pages688
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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