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________________ ५१. छक्खंडागमे खुद्दाबंधो [२,१०, १८. सुगमं । अणंता भागा॥४८॥ कुदो ? अणप्पिदसव्वदव्वेण सव्यजीवरासिम्हि भागे हिदे अणंतरूवावलंभादो । कसायाणुवादेण कोधकसाई माणकसाई मायकसाई सव्वजीवाणं केवडिओ भागो ? ॥ ४९ ॥ सुगमं । चदुब्भागो देसूणा ॥ ५० ॥ कुदो ? एदेहि सयजीवरासिम्हि भागे हिदे सादिरेयचतारिरूवोवलंभादो । लोभकसाई सव्वजीवाणं केवडिओ भागो ? ॥ ५१ ॥ सुगमं । चदुब्भागो सादिरेगो ॥ ५२ ॥ यह सूत्र सुगम है। नपुंसकवेदी जीव सब जीवोंके अनन्त बहुभागप्रमाण हैं ॥ ४८ ॥ क्योंकि, अविवक्षित सर्व द्रव्यका सर्व जीवराशिमें भाग देनेपर अनन्त रूप उपलब्ध होते हैं। कषायमार्गणाके अनुसार क्रोधकषायी, मानकषायी और मायाकपायी जीव सब जीवोंके कितनेवें भागप्रमाण हैं ? ॥ ४९॥ यह सूत्र सुगम है। उपर्युक्त जीव सब जीवोंके कुछ कम एक चतुर्थ भागप्रमाण हैं ॥ ५० ॥ क्योंकि, इनका सर्व जीवराशिमें भाग देनेपर साधिक चार रूप उपलब्ध लोभकपायी जीव सब जीवोंके कितने भागप्रमाण हैं ? ॥ ५१ ॥ यह सूत्र सुगम है। लोभकषायी जीव सब जीवोंके साधिक चतुर्थ भागप्रमाण हैं ।। ५२ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001401
Book TitleShatkhandagama Pustak 07
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1945
Total Pages688
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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