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________________ ५०८] छक्खंडागमे खुद्दाबंधो [२, १०, ३९. __ कुदो ? अप्पिददव्ववदिरित्तसव्वदव्वेहि सव्वजीवरासिमवहिरिज्जमाणे लखेंअणंतसलागाओ विरलिय सव्वजीवरासिं समखंडं करिय दिण्णे तत्थेगरूवधरिदं मोत्तण सेसबहुभागेसु समुदिदेसु कायजोगिदवपमाणुवलंभादो । ओरालियकायजोगी सव्वजीवाणं केवडिओ भागो ? ॥३९॥ सुगमं । संखेज्जा भागा॥४०॥ कुदो ? अणप्पिदसव्वदव्वेण मनजीवरासिम्हि भागे हिदे संखेज्जरूवाणमुवलंभादो। ओरालियमिस्सकायजोगी सव्वजीवाणं केवडिओ भागो ? ॥४१॥ सुगमं । संखेजदिभागो ॥ ४२ ॥ क्योंकि, विवक्षित द्रव्यसे भिन्न सब द्रव्यों द्वारा सर्व जीवराशिको अपहृत करनेपर प्राप्त हुई अनन्त शलाकाओका विरलन कर व सर्व जीवराशिको समखण्ड करके देनेपर उसमें एक रूप धरितको छोड़कर शेष समुदित बहुभागोंमें काययोगी द्रव्यका प्रमाण पाया जाता है। औदारिककाययोगी जीव सर्व जीवोंके कितने भागप्रमाण हैं ? ॥ ३९ ॥ यह सूत्र सुगम है। औदारिककाययोगी जीव सब जीवोंके संख्यात बहुभागप्रमाण हैं ॥ ४० ॥ क्योंकि, अविवक्षित सर्व द्रव्यका सब जीवराशिमें भाग देनेपर संख्यात रूप - उपलब्ध होते हैं। औदारिकमिश्रकाययोगी जीव सब जीवोंके कितने भागप्रमाण हैं ? ॥४१॥ यह सूत्र सुगम है। औदारिकमिश्रकाययोगी जीव सब जीवोंके संख्यातवें भागप्रमाण हैं ॥ ४२ ॥ १ प्रतिषु ' अद्ध-' इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001401
Book TitleShatkhandagama Pustak 07
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1945
Total Pages688
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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