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गाणाजीवेण अंतरानुगमे जोगमग्गणा
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वे उव्वियमिस्स काय जोगीणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ?
२, ९, २७. ]
॥ २४ ॥
सुगमं ।
जहणेण एगसमयं ॥ २५ ॥
कुदो ? व्यिमस्तकायजोगी सत्रेसु पज्जत्तीओ समाणिदेसु एगसमयमंतरण बिदियसमए देवेंसु णेरइएस उप्पण्णेसु वेउच्चियमिस्सकायजोगीणमंतरं एगसमयं होदि ।
उक्कस्सेण वारसमुहुत्तं ॥ २६ ॥
देवेसु णेरइएसु वा अणुप्पज्जमाणा, जीवा जदि सुहु बहुअं कालमच्छंति तो बारस मुहुत्ताणि चैव । कधमेदं णव्वदे १ जिणत्रयणविणिग्गयवयणादो ।
आहारकाय जोगि आहारमिस्सकायजोगीणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ? ॥ २७ ॥
वैक्रियिकमिश्र काययोगियोंका अन्तर कितने काल तक होता है ? ॥ २४ ॥ ग्रह सूत्र सुगम हैं ।
वैक्रियिकमिश्रकाययोगियोंका अन्तर जघन्यसे एक समय होता है ।। २५ ॥
क्योंकि, सब वैक्रियिकमिश्रकाययोगियोंके पर्याप्तियोंको पूर्ण करलेनेपर एक समयका अन्तर होकर द्वितीय समय में देवों व नारकियोंके उत्पन्न होनेपर वैक्रियिकमिश्रकाययोगियोंका अन्तर एक समय होता है ।
वैक्रियिकमिश्रकाययोगियोंका अन्तर उत्कर्षसे बारह मुहूर्त होता है || २६ ||
देव अथवा नारकियों में न उत्पन्न होनेवाले जीव यदि बहुत अधिक काल तक रहते हैं तो बारह मुहूर्त तक ही रहते हैं ।
शंका- यह कैसे जाना जाता है ?
समाधान - यह जिनभगवान् के मुखसे निकले हुए वचनोंसे जाना जाता है । आहारकका योगी और आहारकमिश्रकाययोगी जीवोंका अन्तर कितने काल तक होता है ? || २७ ॥
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