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२, ७, २७९. ] फोसणाणुगमे आहारमग्गणा
[ ४६१ असण्णी मिच्छाइट्ठिभंगो ॥ २७५ ॥ सुगमं ।
आहाराणुवादेण आहारा सत्थाण-समुग्धाद-उववादेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? ॥ २७६ ॥
सुगमं । सव्वलोगो ॥ २७७ ॥
एदं देसामासियसुत्तं । तेण विहारवदिसत्थाणेण अट्ठचोदसभागा फोसिदा । वेउचिएण तिण्हं लोगाणं संखेजदिभागो फोसिदो । सेसं सुगमं ।
अणाहारा केवडियं खेत्तं फोसिदं ? ॥ २७८ ॥ सुगमं । सव्वलोगो वा ॥ २७९ ॥ एदं पि सुगम ।
एवं फोसणाणुगमो त्ति समत्तमणिओगद्दारं । ) असंज्ञी जीवोंका स्पर्शनक्षेत्र मिथ्यादृष्टियोंके समान है ।। २७५ ।। यह सूत्र सुगम है।
आहारमार्गणानुसार आहारक जीवोंने स्वस्थान, समुद्घात और उपपाद पदोंसे कितना क्षेत्र स्पर्श किया है ? ॥ २७६ ॥
यह सूत्र सुगम है। आहारक जीवोंने उक्त पदोंसे सर्व लोक स्पर्श किया है ।। २७७ ॥
यह देशामर्शक सूत्र है । अत एव ( इसके द्वारा सूचित अर्थ-) विहारवत्स्वस्थानकी अपेक्षा आहारक जीवोंने आठ बटे चौदह भागोंका स्पर्श किया है। वैक्रियिकसमुद्घातसे तीन लोकोंके संख्यातवें भागका स्पर्श किया है। शेष सूत्रार्थ सुगम है।
अनाहारक जीवोंने कितना क्षेत्र स्पर्श किया है ? ॥ २७८ ॥ यह सूत्र सुगम है। अनाहारक जीवोंने सर्व लोक स्पर्श किया है ॥ २७९ ।। यह सूत्र भी सुगम है।
इस प्रकार स्पर्शनानुगम अनुयोगद्वार समाप्त हुआ।
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