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________________ २, ७, १२०.] फोसणाणुगमे कायजोगीणं फोसणं [ ४१७ वेउब्बियमिस्सकायजोगी सत्थाणेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? ॥ ११८ ॥ सुगमं । लोगस्स असंखेज्जदिभागो ॥ ११९ ॥ एत्थ वट्टमाणं खेत्तं । अदीदेण तिहं लोगाणमसंखेज्जदिभागो, तिरियलोगस्स संखेज्जदिभागो, अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणो फोसिदो । विहारबदिसत्थाणं णस्थि । समुग्धाद-उववादं णत्थि ॥ १२० ॥ होदु णाम मारणंतिय-उववादाणमभावो, एदेखि दाह वेउब्धियमिस्सकायजोगेण सह विरोहादो । वेउब्वियस्स वि तत्थ अभावो होदु णाम, अपज्जत्तकाले तदसंभवादो । ण पुण वेयण-कसायाणं तत्थ असंभवो, णेरइएसु अपज्जत्तकाले चेव ताणमुवलंभादो। ..................... वैक्रियिकमिश्रकाययोगी जीव स्वस्थान पदोंसे कितना क्षेत्र स्पर्श करते हैं ? ॥११८ ॥ यह सूत्र सुगम है। वैक्रियिकमिश्रकाययोगी जीव स्वस्थान पदोंसे लोकका असंख्यातवां भाग स्पर्श करते हैं ॥ ११९ ॥ यहां वर्तमान कालकी अपेक्षा स्पर्शनका निरूपण क्षेत्रप्ररूपणाके समान है। अतीत कालकी अपेक्षा तीन लोकोंका असंख्यातवां भाग, तिर्यग्लोकका संख्यातवां भाग, और अढाई द्वीपसे असंख्यातगणा क्षेत्र स्पर्श करते हैं। विहारवत्स्वस्थान उनके होता नहीं है। वैक्रियिकमिश्रकाययोगी जीवोंके समुद्घात और उपपाद नहीं होते ॥ १२० ॥ शंका-वैक्रियिकमिश्रकाययोगियोंके मारणान्तिकसमुद्घात और उपपाद पदोंका अभाव भले ही हो, क्योंकि, इनका वैक्रियिकमिश्रकाययोगके साथ विरोध है। इसी प्रकार वैक्रिायकसमुद्घातका भी उनके अभाव रहा आवे, क्योंकि, अपर्याप्तकालमें वैक्रियिकसमुद्घातका होना असंभव है। किन्तु वेदनासमुद्घात और कषायसमुद्घात पदोंकी उनमें असंभावना नहीं है, क्योंकि, नारकियोंके ये दोनों समुद्घात अपर्याप्तकालमें ही पाये जाते हैं ? (जीवस्थान स्पर्शनानुगमके सूत्र ९४ की टीकामें धवलाकारने यहां उपपाद पद भी स्वीकार किया है।) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001401
Book TitleShatkhandagama Pustak 07
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1945
Total Pages688
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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