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________________ २, १, ७.] बंधगसंतपरूवणाए बंधकारणाणि कुदो ? बंधकारणवदिरित्तमोक्खकारणेहि संजुत्तत्तादो। काणि पुण बंधकारणाणि, बंध-बंधकारणावगमेण विणा मोक्खकारणावगमाभावा । वुत्तं च (जे बंधयरा भावा मोक्खयरा भावि जे दु अझप्पे । जे भावि बंधमोक्खे अकारया ते वि विण्णेया ॥ १ ॥) तदो बंधकारणाणि वत्तव्याणि ? मिच्छत्तासंजम-कसाय-जोगा बंधकारणाणि । सम्मइंसण-संजमाकसायाजोगा मोक्खकारणाणि । वुत्तं च ( मिच्छत्ताविरदी वि य कसायजोगा य आसवा होति । दंसण-विरमण-णिग्गह-णिरोहया संवरा' होति ॥ २॥ जदि चत्तारि चेव मिच्छत्तादीणि बंधकारणाणि होति तो .ओदइया बंधयरा उवसम-खय-मिस्सया य मोक्खयरा । भावो दु पारिणामिओ करणोभयवज्जियो होदि ॥ ३ क्योंकि, सिद्ध बन्धकारणोंसे व्यतिरिक्त मोक्षके कारणोंसे संयुक्त पाये जाते हैं। शंका-वे बन्धके कारण कौनसे हैं, क्योंकि बन्धके कारण जाने बिना मोक्षके कारणोंका ज्ञान नहीं हो सकता। कहा भी है जो बन्धके उत्पन्न करनेवाले भाव हैं और जो मोक्षको उत्पन्न करनेवाले आध्यात्मिक भाव हैं, तथा जो बन्ध और मोक्ष दोनोंको नहीं उत्पन्न करनेवाले भाव हैं, वे सब भाव जानने योग्य हैं ॥१॥ अतएव बन्धके कारण बतलाना चाहिये ? समाधान-मिथ्यात्व, असंयम, कषाय और योग, ये चार बन्धके कारण हैं। और सम्यग्दर्शन, संयम, अकषाय और अयोग, ये चार मोक्षके कारण हैं। कहा भी है मिथ्यात्व, अविरति, कषाय और योग, ये कौके आश्रव अर्थात् आगमनद्वार हैं। तथा सम्यग्दर्शन, विषयविरक्ति, कषायनिग्रह और मन-वचन-कायका निरोध, ये संवर अर्थात् कर्मों के निरोधक हैं ॥२॥ शंका-यदि ये ही मिथ्यात्वादि चार बन्धके कारण हैं तो औदयिक भाव बंध करनेवाले हैं, औपशमिक, क्षायिक और क्षायोपशमिक भाव मोक्षके कारण हैं, तथा पारिणामिक भाव बन्ध और मोक्ष दोनोंके कारणसे रहित हैं ॥३॥ १ सामण्णपच्चया खलु चउरो भण्णति बंधकतारो। मिच्छत्तं अविरमणं कसाय-जोगा य बोदना॥ समयसार ११६. २ प्रतिषु संवरो ' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001401
Book TitleShatkhandagama Pustak 07
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1945
Total Pages688
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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