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२, ७, ५.] फोसणाणुगमे णेरइयाणं फोसणं
[ १९९ समुग्धाद-उववादेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? ॥३॥ सुगममेदं । लोगस्स असंखेज्जदिभागो ॥ ४ ॥
एवं सुत्तं वट्टमाणकालमस्सिदृण उबइ8 । ण च एत्थ पुणरुत्तदोसो, मंदबुद्धीणं पुणरुत्तपुव्वुत्तत्थसंभालणेण फलोवलंभादो । अहवा वेयण-कसाय-वेउब्धियपदाणमतीदकालफोसणं पडुच्च एवं वुत्तं । तत्थ चदुण्हं लोगाणमसंखेजदिभागस्स माणुसखेत्तादो असंखेज्जगुणस्स फोसिदखेत्तस्सुवलंभादो । छच्चोदसभागा वा देसूणा ॥ ५॥
एदं मारणतिय-उववादपदाणमदीदकालमस्सिदण वुत्तं । मारणंतियस्स छच्चोदसभागा संखेज्जजोयणसहस्सेण ऊणा। अधवा एत्थ ऊणपमाणमेत्तियमिदि ण णव्वदे, पासेसु मज्झेसु एत्तियं खेत्तमू गमिदि विसिवएसाभावादो । उववादपदे वि ऊणपमाण
नारकियोंके द्वारा समुद्घात व उपपाद पदोंसे कितना क्षेत्र स्पृष्ट है ? ॥ ३ ॥ यह सूत्र सुगम है। नारकियों द्वारा उक्त पदोंसे लोलका असंख्यातवां भाग स्पृष्ट है ॥४॥
यह सूत्र वर्तमान कालका आश्रय कर उपदिष्ट है। यहां पुनरुक्त दोष भी नहीं है, क्योंकि, मन्दबुद्धि जीवोंको पुनरुक्त पूर्वोक्त अर्थका स्मरण करानेसे फलकी उपलब्धि है । अथवा, वेदनासमुद्घात, कषायसमुद्घात और वैक्रियिकसमुद्घात पदों के वर्तमानकालसम्बन्धी स्पर्शनकी अपेक्षा कर यह सूत्र कहा गया है, क्योंकि, उनमें चार लोकोंका असंख्यातवां भाग और मानुषक्षेत्रसे असंख्यातगुणा स्पृष्ट क्षेत्र पाया जाता है ।
अथवा, उक्त नारकियोंके द्वारा कुछ कम छह बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्र स्पृष्ट
___ यह मूत्र मारणान्तिक और उपपाद पदोंके अतीत कालका आश्रय कर कहा गया है। मारणान्तिकसमुद्घातकी अपेक्षा संख्यात योजनसहस्रसे हीन छह बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्र स्पृष्ट है। (देखो पुस्तक ४, पृ. १७४ आदि)। अथवा यहां हीनताका प्रमाण इतना है, यह जाना नहीं जाता, क्योंकि, स्पर्शनके मध्यमें इतना क्षेत्र कम है, इस प्रकार विशिष्ट उपदेशका अभाव है। उपपाद पदमें भी हीनताका प्रमाण पूर्वके
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