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________________ फोसणाणुगमो फोसणाणुगमेण गदियाणुवादेण णिरयगदीए णेरइएहि सत्थाणेहि केवडिखेत्तं फोसिदं ? ॥ १॥ एत्थ णिरयगदीए ति चेवकारो अज्झाहारेयव्यो । तेण किं लद्धं ? णिरयगदीए चेव णेरइया, ण अण्णत्थ कत्थ वि त्ति पडिसेहो उवलद्धो । तेहि णेरइएहि सत्थाणत्थेहि केवडियं खेत्तं फोसिद- किं सव्वलोगो, किं लोगस्स असंखेज्जा भागा, किं लोगस्स संखेज्जदिभागो, किमसंखेजदिभागो त्ति एदमाइरियासंकिदं । वा सद्देण विणा कधमासंकावगम्मदे ? ण, अवुत्तस्स वि पयरणवसेण कत्थ वि अवगमुवलंभादो । सेसं सुगमं । एत्थ ओघाणुगमो किण्ण परूविदो ? ण, चौदसमग्गणांविसिट्ठजीवाणं फोसणावगमेण ___स्पर्शनानुगमसे गतिमार्गणानुसार नरकगतिमें नारकी जीव स्वस्थान पदोंसे कितना क्षेत्र स्पर्श करते हैं ? ॥१॥ यहां सूत्रमें 'नरकगतिमें ही' ऐसा एवकारका अध्याहार करना चाहिये। शंका-एवकारका अध्याहार करनेसे क्या लाभ है ? समाधान-नरकगतिमें ही नारकी जीव हैं, अन्यत्र कहींपर नहीं हैं, इस प्रकार एवकारसे उनका अन्यत्र प्रतिषेध उपलब्ध होता है। उन नारकियोंके द्वारा स्वस्थान पदोंसे कितना क्षेत्र स्पृष्ट है-क्या सर्व लोक स्पृष्ट है, क्या लोकका असंख्यात बहुभाग स्पृष्ट है, क्या लोकका संख्यातवां भाग स्पृष्ट है, किं वा लोकका असंख्यातवां भाग स्पृष्ट है ? यह आचार्य द्वारा आशंका की गई है। शंका-वा शब्दके विना कैसे आशंकाका परिज्ञान होता है ? समाधान-अनुक्तका भी प्रकरणवश कहींपर अवगम पाया जाता है। शेष . सूत्रार्थ सुगम है। शंका- यहां ओघानुगमका प्ररूपण क्यों नहीं किया ? समाधान-नहीं, क्योंकि, चौदह मार्गणाओंसे विशिष्ट जीवोंके स्पर्शनका शान २ प्रतिषु 'वे' इति पाठः । १ प्रतिषु ' .णेरइया' इति पाठः । ३ प्रतिषु मग्गाण-' इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001401
Book TitleShatkhandagama Pustak 07
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1945
Total Pages688
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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