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(सिरि-भगवंत-पुष्पदंत-भूदयलि-पणीदो
छक्खंडागमो - सिरि-वीरसेणाइरिय-विरइय-धवला-टीका-समण्णिदो
तस्स विदियखंडो
खुद्दाबंधो)
(बंधग-संतपरूवणा जयउ धरसेणणाहो जेण महाकम्मपयडिपाहुडसेलो ।
बुद्धिसिरेणुद्धरिओ समप्पिओ पुप्फयंतस्स ॥) जे ते बंधगा णाम तेसिमिमो णिदेसो ॥१॥
'जे ते बंधगा णाम' इदि वयणं बंधगाणं पुव्वपसिद्धत्तं सूचेदि । पुव्वं कम्हि पसिद्धे बंधगे सूचेदि ? महाकम्मपयडिपाहुडम्मि । तं जहा- महाकम्मपयडिपाहुडस्स कदि-वेदणादिगेसु चदुवीसअणियोगदारेसु छट्ठस्स बंधणेत्ति अणियोगद्दारस्स बंधो बंधगो
जिन्होंने महाकर्मप्रकृतिप्राभृतरूपी शैलका अपने बुद्धिरूपी शिरसे उद्धार किया और पुष्पदन्ताचार्यको समर्पित किया ऐसे धरसेनाचार्य जयवन्त होवें।
जो वे बंधक जीव हैं उनका यहां निर्देश किया जाता है ॥१॥
शंका-'जो वे बंधक हैं' ऐसा यह वचन बंधकोंकी पूर्वमें प्रसिद्धिको सूचित करता है। अतएव पूर्वतः किस ग्रंथमें प्रसिद्ध बंधकोंकी यह सूचना है ?
समाधान-यह सूचना महाकर्मप्रकृतिप्राभृतमें प्रसिद्ध बंधकोंकी है। यह इस प्रकार है-महाकर्मप्रकृतिप्राभृतके कृति, वेदना आदि चौबीस अनुयोगद्वारों में छठवें
१ प्रतिषु — कदि-वेदणादिगो' इति पाठः ।
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