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________________ १८ पृष्ठ ४८ ७३ ८२ १२९ १७६ २१४ ३२५ ३२६ 53 ३३४ ३३६ ३४७ ४०० "" ४३९ 39 ५०३ ५४० ५७३ 27 पंकि Jain Education International. २१ २ २ १५ ५ ७ ९ ८ २३ ७ ५ ६ ७ २० ९ २३ १५ २९ ७ २० अशुद्ध घट्खंडागमकी प्रस्तावना नं. ११ भवति ओसहाणं उद्वर्तनघा भावसिद्धिया ) UT) अण्णगो सत्थाणेण केवडिखेत्ते स्वस्थान से कितने असंखेज्जगणे केवडिखेत्ते, सव्वलोगे ? समुद्घादगदा पुढविकाइय वाउकाइय सुहुमतेउकाइय सुहुमवाउकाइय पृथिवीकायिक, वायुकायिक सूक्ष्म तेजस्ायिक अट्ठचोद सभागा आठ बटे चौदह भाग विरलित आधेयसे, आधारका X X X X X X नं. १२ भवदि ओसहीणं अपवर्तनाघात से भवसिद्धिया ( 10 ) शुद्ध अण्णेगो सत्थाणेण उववादेण केवडिखेत्ते स्वस्थान और उपपाद से कितने असंखेज्जगुणे hasखेते ? सव्वलोगे समुग्धादगदा पुढविकाइय- आउकाइय-तेउकाइयवाउकाइय- सुहुमपुढविकाइय-सुहुमआउकाइय- सुहुमते उकाइय-सुहुम वाउकाइया पृथिवीकायिक, अप्कायिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक, सूक्ष्म पृथिवीकायिक, सूक्ष्म अष्कायिक, सूक्ष्म तेजस्कायिक अट्ठ-णवचोद सभागा आठ व नौ बटे चौदह भाग अपहृत आधेयसे आधारका मिच्छाइट्ठी अनंतगुणा ॥ २०० ॥ सुगमं । सिद्धों से मिथ्यादृष्टि अनन्तगुणे हैं ॥ २०० ॥ यह सूत्र सुगम है 1 पृ. ५७३ - ५७४ पर सूत्र संख्या २००, २०१, २०२, २०३, २०४ और २०५ के स्थानपर क्रमशः २०१, २०२, २०३, २०४, २०५ और २०६ होना चाहिये । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001401
Book TitleShatkhandagama Pustak 07
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1945
Total Pages688
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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