SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 309
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २७६ ] छक्खंडागमे खुद्दाबंधो [२, ५, ८२. खेत्तेण अणंताणंता लोगा ॥ ८२ ॥ एदेण उक्कस्सअणंताणतस्स पडिसेहो कदो । सेसं सुगमं । तसकाइय-तसकाइयपज्जत्त-अपज्जत्ता पंचिंदिय-पंचिंदियपज्जत्तअपज्जत्ताणं भंगो ॥. ८३ ॥ तसकाइयाणं पंचिंदियभंगो, तसकाइयपज्जत्ताणं पंचिंदियपज्जत्ताणं भंगो, तसकाइयअपज्जत्ताणं पंचिंदियअपज्जत्ताणं भंगो । कुदो ? समाणाणं जहासंखाए संबंधादो । आवलियाए असंखेज्जदिभागेण संखेज्जदिरूवेहि आवलियाए असंखेज्जदिभागेण च पुध पुध ओवट्टिदपदरंगुलेहि जगपदरम्मि भागे हिदे पंचिंदिय-पंचिंदियपज्जत्त-पंचिंदियअपज्जत्ताणं रासीओ होति त्ति वुत्तं होदि । सेसं जहा जीवट्ठाणे वुत्तं तहा बत्तव्यं । जोगाणुवादेण पंचमणजोगी तिण्णिवचिजोगी दवपमाणेण केवडिया ? ॥ ८४॥ सुगमं । उपर्युक्त प्रत्येक जीवराशि क्षेत्रकी अपेक्षा अनन्तानन्त लोकप्रमाण है ॥ ८२ ॥ . इस सूत्रके द्वारा उत्कृष्ट अनन्तानन्तका प्रतिषेध किया गया है। शेष सूत्रार्थ सुगम है। त्रसकायिक, त्रसकायिक पर्याप्त और त्रसकायिक अपर्याप्त जीवोंका प्रमाण क्रमशः पंचेन्द्रिय, पंचेन्द्रिय पर्याप्त और पंचेन्द्रिय अपर्याप्त जीवोंके समान है ॥८३॥ प्रसकायिकों का प्रमाण पंचेन्द्रियोंके समान, त्रसकायिक पर्याप्तोंका प्रमाण पंचेन्द्रिय पर्याप्तोंके समान, और त्रसकायिक अपर्याप्तोंका प्रमाण पंचेन्द्रिय अपर्याप्तोंके समान है,क्योंकि समान पदोंका सम्बन्ध संख्याके अनुसार होता है। आवलीके असंख्यातवें भागसे, संख्यात रूपोंसे और आवलीके असंख्यातवें भागसे पृथक् पृथक् अपवर्तित प्रतरांगुलोंका जगप्रतरमें भाग देनेपर क्रमशः पंचेन्द्रिय, पंचेन्द्रिय पर्याप्त और पंचेन्द्रिय अपर्याप्तोंकी राशियां होती हैं, यह उक्त कथनका अभिप्राय है। शेष जैसे जीवस्थानमें कहा है वैसे यहां भी कहना चाहिये। योगमार्गणानुसार पांच मनोयोगी और सत्य, असत्य व उभय ये तीन वचनयोगी द्रव्यप्रमाणसे कितने हैं ? ॥ ८४ ॥ बह सूत्र सुगम है। Jain Education International For Private & Personal Use Only . www.jainelibrary www.jainelibrary.org
SR No.001401
Book TitleShatkhandagama Pustak 07
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1945
Total Pages688
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy