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२, ५, १३.] दबपमाणाणुगमे णेरड्याणं पमाणं [२४९
खेत्तेण सेडीए असंखेज्जदिभागो ॥ ११ ॥
एदेण जगसेडीदो उवरिमवियप्पाणं पडिसेहो कदो । अवसेसदोसंखाणं मज्झे एदीए संखाए द्विदमिदि जाणावणमुत्तरसुत्तं भणदि
तिस्से सेडीए आयामो असंखेज्जाओ जोयणकोडीओ ॥१२॥
एदेण सूचिअंगुलादिहेट्ठिमवियप्पाणं पडिसेहो कदो, सूचिअंगुलादिहेट्ठिमसंखाए असंखेज्जजोयणत्ताभावादो । तं पि तव्वदिरित्तअसंखेज्जासंखेज्जमसंखेज्जजोयणकोडिमेत्तं होदूण अणेयवियप्पं । तण्णिण्णयकरणमुत्तरसुत्तं भणदि
पढमादियाणं सेडिवगमूलाणं संखेज्जाणमण्णोण्णब्भासो॥१३॥
सेडिपढमवग्गमूलमादि कादूण जाव बारसम-दसम-अट्ठम-छट्ठ-तदिय-विदियवग्गमूलो त्ति पुध पुध गुणगारगुणिज्जमाणं कमेणावद्विदछण्हं वग्गपत्तीणमण्णोण्णब्भासे कदे
क्षेत्रकी अपेक्षा द्वितीय पृथिवीसे लेकर सातवीं पृथिवी तक प्रत्येक पृथिवीके नारकी जगश्रेणीके असंख्यातवें भागप्रमाण हैं ॥ ११ ॥
__इस सूत्रके द्वारा जगश्रेणीसे उपरिम विकल्पोंका प्रतिषेध किया गया है । अवशेष दो संख्याओंके मध्यमें इस संख्यामें उक्त द्रव्य स्थित है, इसके ज्ञापनार्थ उत्तरसूत्र कहते हैं
जगश्रेणीके असंख्यातवें भागकी उस श्रेणीका आयाम असंख्यात योजनकोटि है ॥ १२॥
इस सूत्रके द्वारा सूच्यंगुलादि अधस्तन विकल्पोंका प्रतिषेध किया गया है, क्योंकि, सूच्यंगुलादिरूप अधस्तन संख्यामें असंख्यात योजनत्वका अभाव है। वह तद्व्यतिरिक्त असंख्यातासंख्यात असंख्यात योजनकोटिप्रमाण होकर अनेक विकल्परूप है । उसका निर्णय करने के लिये उत्तर सूत्र कहते हैं
उपयुक्त असंख्यात कोटि योजनोंका प्रमाण प्रथमादिक संख्यात जगश्रेणीवर्गमूलोंके परस्पर गुणनफल रूप है ॥ १३ ॥
जगश्रेणीके प्रथम वर्गमूलको आदि करके उसके बारहवें, दशवें, आठवें, छठे, तीसरे और दूसरे वर्गमूल तक पृथक् पृथक् गुणकार व गुण्य क्रमसे अवस्थित छह वर्ग
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