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२३६) छक्खंडागमे खुद्दाबंधो
[ २, ३, १४८. आहाराणुवादण आहाराणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ? ॥१४८ ॥
सुगमं । जहण्णण एगसमयं ॥ १४९॥ एगविगहं काऊण गहिदसरीरम्मि तदुवलंभादो । उक्कस्सेण तिण्णिसमयं ॥ १५० ॥ तिष्णि विग्गहे काऊण गहिदसरीरम्मि तिसमयंतरुवलंभादो । अणाहारा कम्मइयकायजोगिभंगो ॥ १५१ ॥
जहण्णेण तिसमऊणखुद्दाभवग्गहणं, उक्कस्सेण अंगुलस्स असंखेज्जदिभागो असंखेज्जासंखेज्जाओ ओसपिएणी-उस्सप्पिणीओ, इच्चेदेहि जहण्णुक्कस्संतरेहि दोण्हमभेदा ।
। एवमेगजीवेण अंतरं समत्तं ।
आहारमार्गणानुसार आहारक जीवोंका अन्तर कितने काल तक होता है ? ॥ १४८॥
यह सूत्र सुगम है। आहारक जीवोंका अन्तर जघन्यसे एक समयमात्र होता है ॥ १४९ ॥
क्योंकि, एक विग्रह करके शरीरके ग्रहण करलेनेपर उक्त एक समयमात्र अन्तर प्राप्त होता है।
आहारक जीवोंका उत्कृष्ट अन्तर तीन समयप्रमाण है ॥ १५० ॥
क्योंकि, तीन विग्रह करके शरीरके ग्रहण करलेनेपर तीन समय अन्तर प्राप्त होता है।
अनाहारक जीवोंका अन्तर कार्मणकाययोगियोंके समान है ॥ १५१ ॥
क्योंकि, जघन्यसे तीन समय कम क्षुद्रभवग्रहण और उत्कर्षसे अंगुलके असंख्यातवें भागमात्र असंख्यातासंख्यात उत्सर्पिणी-अवसर्पिणी, इन जघन्य व उत्कृष्ट भन्तरोंसे दोनों के कोई भेद नहीं है।
इस प्रकार एक जीवकी अपेक्षा अन्तर समाप्त हुआ।
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