SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 182
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २, २, ९१.] एगजीवेण कालाणुगमे तसकाइयकालपरूषणं [१४९ अणिगोदजीवस्म णिगोदेसु उप्पण्णस्स उक्कस्सेण अड्डाइज्जपोग्गलपरियट्रेहिंतो उवरि परिभवणाभावादो' । बादरणिगोदजीवा बादरपुढविकाइयाणं भंगो ॥ ८९ ॥ जहा बादरपुढविकाइयाणं जहण्णकालो खुद्दाभवग्गहणमुक्कस्सो कम्मट्ठिदी तहा एदसिं जहण्णुक्कसकाला होति । जहा बादरपुढविकाइयपज्जत्ताणं कालो तहा बादरणिगोदपज्जताणं होदि । णवरि बादरपुढविकाइयपज्जत्ताणं उकस्साउट्ठिदी संखेज्जाणि वस्ससहस्साणि, बादरणिगोदपज्जत्ताणं पुण उस्कस्सकालो अंतोमुहुत्तं । जहा बादरपुढविकाइयअपज्जत्ताणं जहण्णकालो खुद्दाम प्रगहणमुक्कस्सकालो अंतोप्मुहुत्तं तहा बादरणिगोद अपज्ज ताणं जहणुक्कस्सकालो त्ति भणिदं होदि । तसकाइया तसकाइयपज्जत्ता केवचिरं कालादो होति ? ॥१०॥ सुगम । जहण्णेण खुद्दाभवगहणं अंतोमुहुत्तं ॥ ९१ ॥ क्योंकि, निगोदजीवों में उत्पन्न हुए निगोदसे भिन्न जीवका उत्कर्षसे अढ़ाई पुद्गलपरिवर्तनोंसे ऊपर परिभ्रमण है ही नहीं। बादर निगोदजीवोंका काल बादर पृथिवीकायिकोंके समान है ॥ ८९ ।। जिस प्रकार बादर पृथिवीकायिकोंका जघन्य काल क्षुद्रभवग्रहण और उत्कृष्ट कर्मस्थिति प्रमाण है, उसी प्रकार बादर निगोदजीवों का जघन्य और उत्कृष्ट हाल होता है । जिस प्रकार बादर पृथिवीकायिक पर्याप्तोंका काल है उसी प्रकार बादर निगोद पर्याप्तोंका काल होता है। विशेष केवल इतना है कि बादर पृथिवीकायिक पर्याप्तोंकी उत्कृष्ट आयुस्थिति संख्यात हजार वर्ष है, परन्तु वादर निगोद पर्याप्तोंका उत्कृष्ट काल अन्तमुहर्त ही है। जिस प्रकार बादर पृथिवीकायिक अपर्याप्तोंका जघन्य काल क्षुद्रम ग्रहण और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है उसी प्रकार बादर निगोद अपर्याप्तकोंका जघन्य और उत्कृष्ट काल होता है। . जीव त्रसकायिक और त्रसकायिक पर्याप्त कितने काल तक रहते हैं ? ॥९०॥ यह सूत्र सुगम है। जघन्यसे क्षुद्रभवग्रहण और अन्तर्मुहूर्त काल तक जीव क्रमसे प्रकायिक और सकायिक पर्याप्त रहते हैं ।। ९१ ॥ १ कप्रसौ परिभमणामायादो' इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001401
Book TitleShatkhandagama Pustak 07
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1945
Total Pages688
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy