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विशेष टिप्पण
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पृ. १ पर प्रथम ही धवलाकारकी मंगलाचरणात्मक गाथाके अन्तिम चरणमें 'अभलिणगुणचूलियं ' पाठकी अपेक्षासे ' निर्मल गुणवाली चूलिका ' ऐसा अर्थ किया गया है । किन्तु 'मलिणगुणचूलियं' ही पाठ लेकर भी यह अर्थ किया जा सकता है कि यहां उस " चूलिकाको कहता हूं जिसमें जीवके मलिन गुणों अर्थात् कर्मोका विवरण दिया गया है ।"
पृ. ३ पंक्ति ३ में जीवके ' सत्तविहपरियट्टेसु ' अर्थात् सात प्रकारके परिवर्तनोंका उल्लेख है। आगे पृ. १४ की पंक्ति ८ में पुन: 'सत्तसु संसारेसु' अर्थात् सात प्रकारके संसारका उल्लेख है । ये सातविध परिवर्तन कौनसे है ? तत्त्वार्थसूत्र ( २, १०) की सर्वार्थसिद्धि टीकामें पंचविध परिवर्तन बतलाये गये हैं-- द्रव्य, क्षेत्र, काल, भव और भाव । पर सात परिवर्तनोंका कोई उल्लेख हमारे ध्यानमें नहीं आता । सर्वार्थसिद्धिकारने द्रव्यपरिवर्तनके दो प्रकार अलग अलग बतलाये हैं- एक नोकर्मद्रव्यपरिवर्तन और दूसरा कर्मद्रव्यपरिवर्तन । यदि इन्हीं भेदोंकी अलग अलग विवक्षा ली जाय तो परिवर्तन छह हुए । पर राजवार्तिककारने उक्त पांच परिवर्तनोंका उल्लेख कर बंधके दो भेद किये हैं, एक द्रव्यबंध और दूसरा भावबंध । और फिर द्रव्यबंधके कर्मद्रव्यबंध और नोकर्मद्रव्यबंध ऐसे दो भेद सूचित किये हैं । इस प्रकार कर्मद्रव्यबंध, नोकर्मद्रव्यबंध भावबंध, क्षेत्र, काल, भव और भाव, ये सात परिवर्तन हो सकते हैं। भावबंधपरिवर्तन और भावपरिवर्तनमें भेद यह होगा कि पहला बंधसे और दूसरा उसके उदय या वेदनसे सम्बन्ध रखता है। ये ही सात परिवर्तन धवलाकारकी दृष्टिमें है या अन्य कोई यह निश्चयतः कहा नहीं जा सकता ।
पृ. ५ पंक्ति ८-९ में ' अवयविणि' यह रूप प्राकृतमें असाधारण है । प्राकृतका सामान्य नियम तो यह है कि संस्कृतके हलन्त शब्दोंके अन्त हलका लोप करके शेष अजन्त रूपमें ही विभक्ति जोड़ी जाती है जिसके अनुसार संस्कृत ' अवयविन् ' का प्राकृतमें सप्तमी विभक्ति सहित रूप 'अवयविम्मि' या 'अवयविम्हि ' होना चाहिये । पर यहां अन्त न् का लोप न कर संस्कृतके अनुसार 'अवयविणि' रूप बनाया गया है । ऐसे उदाहरण प्रायः नहीं मिलते।
पृ. २० पं. ५ में निःसृतावग्रह और अनिःसृतावग्रहका जो एक दूसरा स्वरूप धवलाकारने बतलाया है वह जीवकांड गाथा ३१२-३१३ में बतलाये हुए स्वरूपसे ठीक विपरीत है। अर्थात् जिसे धवलाकारने निःसृतावग्रहका स्वरूप कहा है, उसे जीवकांडकार अनिःसृतावग्रहका लक्षण मानते हैं और उससे विपरीत तदनुसार ही विपरीत। यह भेद ध्यान देने योग्य है।
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