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१, ९-८, १६.] चूलियार सम्मत्तुप्पत्तीए खइयचारित्तपडिवजणविहाणं [३६५ . संछद्धेसु से काले पढमसमयअवेदो होदि । ताधे चेव पढमसमयस्सकण्णकरणकारओ च । ताधे द्विदिसंतकम्मं संजलणाणं संखेज्जाणि वस्ससहस्साणि, ठिदिबंधो सौलस वस्साणि अंतोमुहुत्तूणाणि । अणुभागसंतकम्मं आगाइदेण सह माणे थोवं, कोधे विसेसाहियं, मायाए विसेसाहियं, लोभे विसेसाहियं । बंधी वि एरिसो चेव' । अणुभागखंडगो पुण जो आगाइदो तस्स कोधे फद्दयाणि थोवाणि, (माणे फद्धयाणि) विसेसाहियाणि, मायाए फद्दयाणि विसेसाहियाणि, लोभे फद्दयाणि विसेसाहियाणि । आगाइदसेसाणि फद्दयाणि लोभे थोवाणि, मायाए अणंतगुणाणि, माणे अणंतगुणाणि, कोधे अणंतगुणाणि । एसा परूवणा पढमसमयअस्सकण्णकरणकारयस्स।
तम्हि चेव पढमसमए चदुहं संजलणाणमपुव्वफद्दयाणि करेदि । तेसिं परूवणं
प्राप्त होनेपर अनन्तर कालमें प्रथमसमयवर्ती अवेदी होता है । उसी समयमें ही प्रथमसमयवर्ती अश्वकर्णकरणकारक भी होता है । उस समयमें संज्वलनचतुष्कका स्थितिसत्व संख्यात वर्षप्रमाण और स्थितिबन्ध अन्तर्मुहूर्त कम सोलह वर्षमात्र हे ता है। अश्वकर्णकरणको प्रारम्भ करनेवालेने जिस अनुभागकांडकको ग्रहण किया है उसके साथ तत्कालभावी अनुभागसत्वका यह अल्पबहुत्व किया जाता है- अनुभागसत्व मानमें स्तोक, क्रोधमें विशेष अधिक, मायामें विशेष अधिक और लोभमें विशेष अधिक है। अनुभागवन्ध भी इसी अल्पवहुत्वविधिसे प्रवर्तमान है। परन्तु जो अनुभागकांडक ग्रहण किया है उसके क्रोध स्पर्द्धक स्तोक हैं। मानमें स्पर्द्धक विशेष अधिक हैं । मायामें स्पर्द्धक विशेष अधिक है। लोभमें स्पर्द्धक विशेष अधिक हैं। ग्रहण करनेसे अर्थात् घात करनेसे शेष अनुभागके स्पर्द्धक लोभमें स्तोक, मायामें अनन्तगुणित, मानमें अनन्तगुणित और क्रोधमे अनन्तगुणित है। यह प्रथमसमयवती अश्वकणकरणकारकका प्रस
उसी प्रथम समयमें चार संज्वलनकषायोंके अपूर्वस्पर्द्धकोंको करता है। उनकी
१ ताहे संजलणाणं ठिदिसतं संखवस्सयसहस्सं । अंतोमुहुत्तहीणो सोलस वस्साणि ठिदिबंधी ॥ लब्धि. ४६३.
२ एन्थ सह आगाइदेणेत्ति बुत्ते अस्सकपणकरणमाडवेंतेण जमणुभागखंडयमागाइदं तेण सह तक्कालभावियस्स अणुभागसंतक.म्मस्स एदमप्पाबहुअंकीरदि त्ति भणिदं होदि ।। जयध. अ. प. ११०५.
३ रससंतं आगहिदं खडेण समं तु माणगे कोहे। मायाए लोभे वि य अहियकमा होति बंधे वि ।। लब्धि. ४६४.
४ रसखंडफड्डयाओ कोहादीया हवंति अहियकमा । अबसेसफड्डयाओ लोहादि अणंतगुणियकमा ।। लब्धि. ४६५.
५ ताहे संजलणाणं देसावरफंडयस्सं हेट्टादो । गंतगुणूणमपुब्बं फड़यमिह कुणदि हु अणंतं । लब्धि. ४६६. काणि अपुवफद्दयाणि णाम ? संसारावस्थाए पुवमलद्धप्पसरुवाणि खवगसेटी (ए?) चेव अस्सकण्णकरणद्धाए समुवलममाणसरुवाणि पुवमदएहिंतो अणतगुणहाणीए ओवहिज्जमाणसहावाणि जाणि फद्दयाणि ताणि अपुव्वफद्दयाणि ति
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