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२२६] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१, ९-८, ५. यव्वं जाव अइच्छावणा आवलियमेत्ता जादा ति । तदो उवरिमणिक्खेवो चेव वड्डदि जाव उक्कस्स णिक्खवं पत्तो ति।।
चाहिए, जब तक कि अतिस्थापना पूर्ण आवलीप्रमाण होती है। उससे ऊपर उपरिम निक्षेप ही उत्कृष्ट निक्षेप प्राप्त होने तक बढ़ता जाता है।
विशेषार्थ---अपकर्षण या उत्कर्षण किया हुआ द्रव्य जिन निषेकोंमें मिलाते हैं, वे निषेक निक्षेपरूप कहलाते हैं । उक्त द्रव्य जिन निषेकोंमें नहीं मिलाया जाता है, वे निषेक अतिस्थापनारूप कहलाते हैं । निक्षेप और अतिस्थापनाका क्रम यह है कि उदयावलीमेंसे एक कम कर शेषमें तीनका भाग दीजिए । एक रूप सहित प्रारंभका त्रिभाग तो निक्षेपरूप है, अर्थात् वह अपकृष्ट द्रव्य एक रूप सहित प्रथम विभाग मिलाया जाता है, और अन्तके दो भाग अतिस्थापनारूप हैं, अर्थात् उनमें वह अपकृष्ट किया हुआ द्रव्य नहीं मिलाया जाता है। उदाहरणार्थ- उदयावली या प्रथमावलीके एकसे लेकर सोलह निषेक कल्पना कीजिए और सत्तरहसे लेकर बत्तीस तकके निषेक दूसरी आवलीके कल्पना कीजिए । इस कल्पनाके अनुसार दूसरी आवलीके सत्तरहवें निषेकका द्रव्य अपकर्षण करके नीचे उदयावलीमें देना है, तो उक्त क्रमके अनुसार १६ मेंसे एक कम करनेपर १५ रहे । उसका त्रिभाग ५ हुआ। उसमें १ के मिलानेपर होते हैं । सो इन प्रारंभके ६ समयोंके निषकोंमें उक्त अपकृष्ट द्रव्यका निक्षेप होगा। इसीलिए वे निषेक स्थापना या निक्षेपरूप कहे जाते हैं। बाकीके ७ से लेकर १६ तकके जो प्रथमावलीके निषक है उनमें उस द्रव्यका निक्षेप नहीं होगा। इसीलिए वे अतिस्थापनारूप कहे जाते हैं। यह जघन्य निक्षेप और जघन्य अतिस्थापनाका स्वरूप है। इससे ऊपर दूसरी आवलीके दूसरे निषेकका अपकर्षण किया, तव इसके नीचे एक समय अधिक आवलीमात्र सर्व निपेक हैं, उनमें निक्षेप तो एक समय कम आवलीका त्रिभागमात्र ही रहेगा। किन्तु अतिस्थापनाका प्रमाण पहलेसे एक समय अधिक हो जावेगा। पुनः उसी दूसरी आवलोके तीसरे निषेकको अपकर्षण कर नीचे दिया, तब भी निक्षेपका प्रमाण वही रहेगा, किन्तु अतिस्थापना एक समय अधिक हो जावेगी । पुनः उसी दूसरी आवलीके चौथे निषेकको अपकर्षण कर नीच दनपर भी निझपका प्रमाण तो पूवाक्त ही रहेगा, किन्तु अतिस्थापनामें एक समय अधिक हो जायेगा। इस प्रकार ऊपर ऊपरके निषेकोको अपकर्षण कर नीचे देनेपर निक्षेपका प्रमाण तब तक वही रहेगा जब तक कि अतिस्थापनाका प्रमाण एक एक समय बढ़ते बढ़ते पूरा एक आवलीप्रमाण काल न हो जावे।
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१णिक्खेवमदित्थावणमवरं समऊणअवलितिभाग। तेगुणावलिमेत्तं विदियावलियादिमणिसेगे ॥ एत्तो समऊणावालतिभागमेतो तु तं खु णिक्खेतो। उवार आवलिवन्जिय सगहिदी होदि शिखेको । उकस्सद्विदिबंधो समयजुदावलिदुगेण परिहीणो। उक्का दिम्मि चरिमे हिदिम्मि उकस णिक्खेवो । लब्धि. ५६-५८. उकस्सओ पुण णिक्खेवो केत्तिओ ? जत्तिया उकस्सिया कम्मट्ठिदी उक्कस्सियाए आवाहाए समयुत्तरावलियाए च ऊणा तत्तिओ उकस्सओ णिवखेवो । जयध. अ. प. ५९९.
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